मैं महाकाल हूं : Happy Shiv Raatri

धवल विलास कैलाश का
काल की चौपाल हूं 
डमरू त्रिपुण्ड त्रिशूल ब्याल
साक्षात मै त्रिकाल हूं

 

चन्द्र गंगा गौरी गणेश
ब्रह्मा विष्णु महेश हूं
महा गरल महा सरल
लिपटा मृगेंद्र छाल हूं
विध्वंस हूं त्रिलोक का
साक्षात मैं महाकाल हूं

 

हिम शिखर की श्रृंखला
मैं धवल विलास हूं
नितान्त श्वेत दुग्ध सा
आशुतोष का निवास हूं
मां पार्वती का मोहपाश 
सब दुखों का सर्वनाश हूं
मैं कैलाश हूं

 

Divine Kailash (pic credit: Girdhar Singh Manral KMVN)
kailash parwat (Pic credit: Girdhar Singh Manral KMVN)
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मैं राम हूं

( https://bishtedition.com/main-ram-hun/ )

मैं पहाड़ हूं !

घाटियों से चोटियों तक
हिम्मतों से कोशिशों तक
एक इम्तेहान हूं
करीब आसमान के
ऊंचा खड़ा मचान हूं !

 

कहीं चीड़ देवदार हैं
कतार में चिनार हैं
ऊंचाईयां हरी भरीं
गजब के ये दयार हैं
चीड़ देवदार हैं गजब के ये दयार हैं (pic courtesy: Harsh Kafar’s Facebook Wall)
अडिग अचल अटल प्रबल
पर्वतों से भरा पटल 
धरा से आसमान तक 
सृष्टि मैं स्वयं में सकल 

 

बाधाओं में परम हूं मैं
जिजिविषा चरम हूं मैं
घिरा सदा मैं शीत से
पर स्वभाव से गरम हूं मैं

 

Heart Touching Himalaya (pic credit: Girdhar Singh Manral KMVN)
ढका हुआ मैं बर्फ से
रास्ता उजाड़ हूं
बादलों को चूमता
आसानियों को लताड़ हूं

 

जो कभी झुका नही
जो कभी चुका नही
खड़ा धरा के वक्ष पर
हवाओं की पछाड़ हूं !
गूंजता ब्रह्माण्ड में 
मैं धरती की दहाड़ हूं
मैं पहाड़ हूं !

 

शब्द सेवक :
विजय बिष्ट ‘पहाड़ी

 

Jai Kailash (Pic Credit: Girdhar Singh Manral KMVN)

 

in the Lap of Kailash (pic credit: Girdhar Singh Manral KMVN)

 

Girdhar Singh Manral @ Kailash

 

Vijay Bisht aka Pahadi, who loves to transform emotions into words and weave them to create sincere vibes

 

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14 thoughts on “मैं महाकाल हूं : Happy Shiv Raatri”

  1. रत्नाकर दुबे

    “मै महाकाल हूं” कविता पार्वती पति शिव के शिवत्व स्वरूप यथा मस्तक पर चंद्रमा,सिर पर गंगा,तीन नेत्र,गले में विष, विभूति रमाएं बाघम्बर लपेटे शोभायमान छवि को पूर्णरूपेण अभिव्यक्ति प्रदान करती कविता हैं।कवि की कविताई की पूर्णता का नाम शिव हैं।अब आप पूर्ण हैं। महादेव के चरित्र वर्णन में असमर्थता व्यक्त करते हुए महाकवि तुलसीदास स्वयं स्वीकार करते हुए कहते हैं कि “चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु। बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवांरु।।
    सादर प्रणाम

    1. आपके द्वारा कविता का स्नेहपूर्ण आकलन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। मार्गदर्शन प्रदान करते रहिएगा 🙏🙏

  2. Jitendra Giri

    शिव जितने सरल है समझना उतना ही कठिन है

  3. मेरे प्यारे कवि दोस्त पर हमे गर्व है अति सुन्दर शिव महिमा
    आप ऐसे ही अच्छा अच्छा लिखते रहें।

  4. Girish Chandra pandey

    बहुमुखी प्रतिभा के धनी विजय भाई आपका यह प्रयास भी हमेशा की तरह कुछ विशेष है

    1. धन्यवाद पाण्डेय जी
      यदि आपको आनंद आया हो तो अन्य मित्रों के साथ भी इसे साझा कीजिएगा

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