2.4 कार्यक्रम प्रबंधन के चरण (Steps of Event Management)
कार्यक्रम प्रबंधन के भी मुख्य रूप से 3 चरण होते हैं जो कि निम्नवत है
1- नियोजन Planning (कार्यक्रम से पूर्व)
2- कार्य निष्पादन Execution (कार्यक्रम के दौरान)
3- मूल्यांकन Evaluation (कार्यक्रम के उपरांत)
नियोजन अथवा योजना बनाना (Planning)
किसी भी कार्यक्रम के आयोजन करने के लिए नियोजन अथवा योजना बनाना (Planning) सबसे पहला चरण होता है जिसे वास्तविक कार्यक्रम के आयोजन से पहले किया जाता है।
नियोजन में कार्यक्रम (Event) के आयोजन की रूपरेखा (Blue Print) तैयार की जाती है।
नियोजन अथवा योजना बनाने की शुरुआत क्या, क्यों, कब, कहां, कैसे, कौन, कितना जैसे सवाल पूछने और उनके जवाब देने से होती है
परिभाषा:
लक्ष्य एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपलब्ध संसाधनों के अनुसार स्पष्ट दिशानिर्देश एवं कार्य योजना की रूपरेखा (Blue Print) को तैयार करने की प्रक्रिया नियोजन (Planning) कहलाती है।
नियोजन अथवा योजना बनाना कार्यक्रम प्रबंधन (Event Management) का सबसे पहला चरण है। कार्यक्रम से पूर्व विस्तृत कार्य योजना ना बनाने से कार्यक्रम के सफल होने पर संदेह रहता है।
किसी विशेष प्रकार के लक्ष्य एवं उद्देश्य की प्राप्ति करने के लिए बनाई जाने वाली योजना को रणनीति (स्ट्रेटजी – Strategy) कहा जाता है। अच्छे नियोजन के संबंध में एक प्रसिद्ध कहावत है कि अच्छी योजना बनाने का अर्थ आधे कार्य को कार्य शुरू होने से पहले ही पूर्ण कर लेना होता है (well planned means half done)
अच्छे नियोजन के महत्व को अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान बेंजामिन फ्रैंकलिन के कथन “By failing to plan, you are preparing to fail” से भी समझा जा सकता है जिसका अर्थ है “योजना बनाने में विफल रहने का मतलब है कि, आप असफल होने की तैयारी कर रहे हैं”
अच्छे नियोजन से किसी कार्य को संचालित करने के लिए उपलब्ध अनेक विकल्पों में से सर्वोत्तम विकल्प का निर्धारण सुनिश्चित किया जाता है। योजना बनाना अथवा नियोजन खेल प्रबंधन का प्रारंभिक एवं सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। जिसमें पूर्व निर्धारित लक्ष्य और उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु रूपरेखा तैयार की जाती है।
कार्यक्रम (Event) की योजना (Planning) बनाने निम्न बातों पर विशेष रूप से विचार किया जाता है 👇
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कार्यक्रम (इवेंट) के आयोजन की तिथि एवं समय का निर्धारण
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बजट व आयोजन स्थल का निर्धारण (Deciding Budget and Venue)
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कार्यक्रम की सूची एवं क्रम (Scheduling)
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प्रतिभागियों, अतिथियों एवं दर्शकों का निर्धारण तथा उनकी आवास, भोजन एवं बैठक व्यवस्था आदि
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कार्य विभाजन (Distribution of Duties)
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संसाधनों की व्यवस्था (Arrangement of Resource)
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आयोजन स्थल को कार्यक्रम के लिए तैयार करना (Logistics)
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सूचना प्रसारण, प्रेस एवं मीडिया का कार्य (प्रचार एवं मार्केटिंग Media & Marketing)
आयोजन की योजना बनाते समय प्रबंधक अपने उपलब्ध भौतिक, आर्थिक और मानवीय संसाधनों के अनुसार योजना बनाते हैं तथा अच्छे नियोजन से इनका इष्टतम (optimum) उपयोग सुनिश्चित किया जाता है। कार्यक्रम नियोजन में कार्यक्रम के दौरान होने वाली संभावित अप्रत्याशित घटनाओं (unforseen emergencies) से निपटने के तरीकों को भी ध्यान में रखा जाता है।
योजना निर्माण का कार्य कौन करता है ?
योजना निर्माण का कार्य प्राय: संस्था प्रमुख, टीम लीडर, कैप्टन अथवा टीम के वरिष्ठ सदस्यों के द्वारा किया जाता है। योजना निर्माण के कार्य में विषय विशेषज्ञों की राय (experts’ opinion) भी ली जाती है।
नियोजन के उद्देश्य / महत्व /लाभ / आवश्यकताएं
Objectives / Importance / Benefit / Need of Planning
नियोजन की जरूरत क्यों पड़ती है (Why We Need To Plan)
1- नियोजन किसी कार्यक्रम को संपन्न कराने के लिए आयोजकों को मानसिक, आर्थिक और भौतिक रूप से तैयार करता है
2- आयोजकों के उत्साह एवं आत्मविश्वास में वृद्धि (Confidence Building)
3- उपलब्ध समय, आर्थिक, भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित किया जाता है (optimum use of resources)
4- विभिन्न समितियों के बीच अच्छा समन्वय स्थापित करना (Coordination)
5- समस्त कार्यों एवं परिस्थितियों पर बेहतर नियंत्रण (Control)
6- गलतियों की संभावनाएं कम हो जाती हैं (Minimising the Chances of Making Mistakes)
7- नए विचार एवं रचनात्मकता के लिए पर्याप्त संभावना रहती है (Scope for New Ideas and Creativity)
8- कार्य दक्षता में वृद्धि करना (Efficiency Enhancement)
9- सुरक्षा तथा किसी अप्रत्याशित आपात स्थिति से निपटने के लिए वैकल्पिक योजना तैयार करना (Security & Keeping Plan ‘B’ ready to meet any unforseen condition of emergency)
कार्य निष्पादन अथवा क्रियान्वयन (Execution)
योजना के क्रियान्वयन को ही कार्य निष्पादन (Execution) कहते हैं।
क्रियान्वयन को योजनागत उद्देश्यों तथा उनकी सफलता के बीच का सेतु (Bridge) कहा जाता है।
योजना के अनुसार कार्य को वास्तविक रूप से करने को कार्य निष्पादन अथवा क्रियान्वयन (Execution) कहते हैं। ठीक प्रकार से कार्य निष्पादन हो जाना ही कार्यक्रम की सफलता को सुनिश्चित करती है।
योजना के अनुसार कार्यों को करने की प्रक्रिया कार्य निष्पादन अथवा क्रियान्वयन (Execution of Plan) कहलाती है।
कार्य निष्पादन किसी भी कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है, जिसमें कार्यक्रम से पूर्व बनाई गई समस्त योजनाओं को कार्यरूप (Action) में निष्पादित करना होता है। (Plans are converted into action)
कार्य निष्पादन किसी कार्यक्रम के सबसे महत्वपूर्ण भाग होने के साथ सबसे अधिक संवेदनशील घटना होती है क्योंकि कार्य निष्पादन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाने पर उसमें सुधार अथवा बदलाव करने की अधिक संभावनाएं नहीं रहती है। ठीक प्रकार से कार्य निष्पादन होना ही संपूर्ण कार्यक्रम की सफलता को सुनिश्चित करता है।
कार्य निष्पादन में कोई गलती ना हो इसके लिए कार्यक्रम से पूर्व एक पूर्ण वास्तविक अभ्यास (फुल ड्रेस रिहर्सल – Full Dress Rehearsal) अवश्य करनी चाहिए। फुल ड्रेस रिहर्सल वास्तविक कार्यक्रम की परिस्थितियों में किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम के होने के दौरान कार्य में यदि कोई खामी नजर आए तो उसमें उसमें तत्काल परिवर्तन करना संभव नहीं होता है। कार्य निष्पादन की सफलता तात्कालिक रूप से कार्य संपादित करने वाले लोगों के कुशल दिशा निर्देशन एवं देखरेख (Supervision) क्षमता पर निर्भर करती है। कार्य निष्पादन के दौरान कुछ बाधा उत्पन्न हो जाने पर प्रबन्धक अपने सूझबूझ एवं तात्कालिक विवेक (Presence of Mind) से स्थिति पर नियंत्रण रखने का प्रयास करते हैं तथा कार्य को ठीक प्रकार से सम्पन्न करने का प्रयास करते हैं।
वैसे तो कार्यक्रम प्रबंधन के सभी चरण महत्वपूर्ण होते हैं परंतु कार्य निष्पादन की सफलता से ही संपूर्ण कार्यक्रम की सफलता को आंका जाता है। अतः कार्य निष्पादन के समय कार्य निष्पादन में संलग्न सभी लोगों की सतर्कता का स्तर (Level of Alertness) उच्चतम स्तर पर होना चाहिए ।
सफल कार्य निष्पादन (क्रियान्वयन) के लिए कार्यक्रमों की निरंतर निगरानी एवं निरीक्षण (Supervision) की आवश्यकता पड़ती है।
निगरानी एवं निरीक्षण से यह सुनिश्चित किया जाता है कि कार्य निष्पादन के दौरान यदि कोई अप्रत्याशित बाधा ना आए, और यदि अपरिहार्य स्थिति में यदि कोई बाधा आ ही जाए तो प्रबंधक उसे अपने विवेक एवं त्वरित निर्णय लेने की क्षमता से तत्काल दूर करते हैं जिससे कार्यक्रम सुचारू रूप से चलता रहे।
मूल्यांकन (Evaluation/Assessment)
मूल्याकंन कार्यक्रम आयोजन का अंतिम चरण होता है जिसमें कार्यक्रम आयोजन की सफलता अथवा असफलता को आंका जाता है। इसमें इस बात का आकलन किया जाता है कि कार्यक्रम अपने लक्ष्य एवं उद्देश्यों को पूर्ण करने में किस स्तर तक सफल रहा।
कार्यक्रम के संपन्न हो जाने के बाद उपयोग की गई इस समस्त वस्तुओं को वापस सहेज कर रखा जाता है तथा कार्यक्रम स्थल की साफ सफाई आदि सुनिश्चित की जाती है।
मूल्यांकन का महत्व (Importance of Evaluation)
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मूल्यांकन से कार्यक्रम के नियोजन, कार्य निष्पादन तथा व्यवस्था में प्रयुक्त संसाधनों एवं कर्मियों के मजबूत एवं कमजोर (खूबियों और कमियों) पक्षों का विश्लेषण (analysis) किया जाता है।
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कार्यक्रम में लगे लोगों के साथ बाहरी लोगों से भी कार्यक्रम के बारे में उनकी राय (Feedback) ली जाती है
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विभिन्न स्रोतों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर कार्यक्रम द्वारा उत्पन्न प्रभाव का आकलन भी किया जाता है।
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यह भी विचार किया जाता है कि भविष्य में इसे किस प्रकार और बेहतर बनाया जा सकता है।
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कार्यक्रम की समीक्षा एवं मूल्यांकन से भविष्य में किए जाने वाले कार्यक्रमों हेतु सबक मिलता है।
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