CPR & AED, the Ultimate Life Savers
CPR (Cardiopulmonary Resuscitation) is an important life saving skill and AED (Automated External Defibrillator) is an important life saving device.
CPRऔर AED प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड का ही एक भाग है जिसे मरीज की जान बचाने के लिए एक आपातकालिक सहायता के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
जब कभी लगता है कि रोगी की धड़कन अथवा सांस रुक गई है और लगता है कि रोगी की मौत हो चुकी है तब ऐसी दशा में जीवन बचाने के अंतिम प्रयास के रूप में CPR और AED का प्रयोग किया जाता है ।
पहले हम CPR के बारे में समझते हैं 👇
CPR (Cardiopulmonary Resuscitation) को हिन्दी में हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन कहते हैं।
CPR किसे दिया जाता है और क्यों दिया जाता है ?
CPR एक आपातकालीन जीवन-रक्षक प्रक्रिया है जो तब की जाती है जब किसी की सांस या दिल की धड़कन रुक जाती है। यह किसी आपात स्थिति के बाद हो सकता है, जैसे बिजली का झटका , दिल का दौरा, दुर्घटना या डूबना आदि।
यदि सांसे अथवा रक्त प्रवाह रुक जाए तो हृदय और मस्तिष्क में रक्त एवं ऑक्सीजन का संचार रुक जाए तो 3 से 5 मिनट के अंदर ब्रेन सेल मरना शुरू हो जाते हैं जिससे शरीर को स्थायी क्षति हो सकती है और 10 से 15 मिनट के अन्दर मरीज की मौत हो जाती है
इसलिए सीपीआर को मरीज की जान बचाने का आखिरी प्रयास कह सकते हैं, जिसमें मरीज को उचित चिकित्सा सहायता मिलने तक रक्त संचार और सांसों को बरकरार रखा जाए। 108 या स्थानीय आपातकालीन नंबर पर फोन करना चाहिए।
CPR का महत्व
दिल का दौरा पड़ने के बाद के पहले एक घंटे को गोल्डन ऑवर कहते हैं क्यों इसी गोल्डन ऑवर में मरीज की जान बचा पाने की संभावना अधिक होती है और जैसे-जैसे समय बीतता है मरीज के जीवन बचाने की संभावनाएं भी कम होती चली जाती है।
परंतु कभी-कभी दुर्भाग्य से मरीज को एंबुलेंस या मेडिकल की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है ऐसी स्थिति में CPR ही उसकी जीवन बचाने का आखरी सहारा रह जाता है।
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CPR थम चुकी सांस और धड़कन को पुनः चालू करती है
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बचाव-श्वास (Rescue Breath) व्यक्ति के फेफड़ों को ऑक्सीजन प्रदान करती है।
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CPR तब तक जारी रखना है जब तक शरीर में रक्त संचार पुनः प्रारंभ ना हो जाए और जब तक कि दिल की धड़कन और सांस लेना बहाल नहीं हो जाता ।
कैसे सुनिश्चित करें कि मरीज को CPR की आवश्यकता है
अगर किसी को दिल का दौरा पड़ जाय तो सबसे महत्वपूर्ण है उसके साथ जो भी व्यक्ति है वह खुद ना घबराए और अपना धैर्य बनाए रखे। उसे तुरंत आपातकालीन नंबर 108 पर कॉल करनी चाहिए और संभव हो तो मरीज को शीघ्रतम निकटम हास्पिटल में पहुंचाने की व्यवस्था करे।
इस बीच उसे मरीज की हालत का सतर्कता पूर्वक जायजा लेने चाहिए की मरीज होश में है कि नहीं, उसकी सांसे चल रही है कि नहीं वह बात कर पा रहा है कि नहीं । और यदि लगता है कि मरीज की हालत खराब होती जा रही है और उसे मेडिकल सुविधा मिलने में देर हो सकती है तो मरीज के साथी को आपातकालीन स्थिति के लिए तैयार हो जाना चाहिए। और यदि मरीज बेहोश हो जाए उसकी धड़कने धीमी पड़ जाए सांस रुक जाए तो निश्चित तौर पर CPR ही उसकी जान बचाने का आखिरी तरीका रह जाता है
सीपीआर के विभिन्न प्रकार –
CPR तकनीक व्यक्ति की उम्र या आकार के आधार पर थोड़ी भिन्न होती है, सीपीआर के 3 मुख्य प्रकार हैं:
1- हाथों द्वारा सीपीआर (हैंड्स-ओनली सीपीआर – Hands Only CPR)– इसे केवल कंप्रेशन सीपीआर के रूप में भी जाना जाता है। यह तकनीक बचाव सांस दिए बिना केवल छाती को दबाने पर ध्यान केंद्रित करती है। इसमें प्रति मिनट 100 -120 कंप्रेशन की दर से लगातार छाती को कंप्रेशन प्रदान करना होता है।
2- माउथ-टू-माउथ विद हैंड प्रेस CPR– यह CPR की पारंपरिक विधि है। यह CPR की छाती को दबाने और सांसों को बचाने को जोड़ती है। इसमें छाती को 30 बार दबाने के बाद 2 बार बचाव की सांसें (Rescue Breath) दी जाती हैं।
3 – बाल चिकित्सा CPR– यह तकनीक विशेष रूप से शिशुओं और बच्चों के लिए उपयोग की जाती है। शिशुओं के लिए संपीड़न (compression) की यह दर 15 संपीड़न है जिसके बाद 2 बचाव सांसें दी जाती हैं। शिशुओं को CPR देते समय बहुत सावधानी रखनी पड़ती है। शिशुओं की छाती पर उतना जोर से दबाव नही डाला जाता है जितना कि किसी वयस्क व्यक्ति को CPR देते समय डाला जाता है क्यों कि शिशुओं की हड्डियां कोमल और कमजोर होती है, उन्हें CPR देते समय केवल उंगलियों से ही छाती को दबाना होता है।
CPR कैसे देते हैं (How to Give CPR)
CPR देने के लिए सबसे पहले पीड़ित को किसी ठोस समतल जगह पर लिटा दिया जाता है और प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति मरीज के सीने पास घुटनों के बल बैठ जाता है।
फिर मरीज का मुंह, नाक और गला चेक कर ये सुनिश्चित किया जाता है कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं है और उसके मुंह में कोई भोजन तो नहीं है। जीभ अगर पलट गयी है तो उसे सही जगह पर उंगलियों के सहारे लाया जाता है।
CPR शुरू करने के लिए सीपीआर देने वाला व्यक्ति अपने घुटनों के बाल खड़े होकर अपने दोनों हाथों की कोहनियों से सीधा रखते हुए हाथों एक के ऊपर एक रखकर ऊपर वाले हाथ की उंगलियों को नीचे वाले हाथ की उंगलियों में लॉक करके मरीज के सीने के बीचो-बीच रखना है ।
फिर अपने शरीर का वजन अपने दोनों हाथों पर डालते हुए मरीज की छाती को बार-बार तेजी से बार-बार 1 से 2 इंच तक पंप करते हुए दबाया जाता है। इसमें प्रति मिनट 100 -120 कंप्रेशन की दर से लगातार छाती को कंप्रेशन प्रदान करना होता है। ऐसा करने की एक या दो मिनट के चक्र में धड़कने फिर से शुरू हो जाती हैं। इसे हाथों द्वारा CPR (Hands Only CPR) कहते हैं।
यदि केवल हाथों द्वारा CPR देने पर मरीज की हालत में कोई सुधार नहीं होता है तो Mouth to Mouth Respiration with Hand Press CPR तरीका अपनाया जाता है.
अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धड़कने शुरू नहीं होतीं तो पम्पिंग के साथ मरीज को बचाव की सांसें (Rescue Breath) देने की कोशिश की जाती है। मरीज को मुँह से सांस देना जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन (Mouth to Mouth Respiration) कहते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को माउथ-टू-माउथ विद हैंड प्रेस CPR कहते हैं।
इस CPR में मरीज की चेस्ट पर 30 बार कंप्रेशन (पंप करना) करने के बाद 2 बार मरीज के मुंह पर अपना मुंह लगाकर हवा को जोर से फूका जाता है। माउथ टू माउथ रेस्पिरेशन (Mouth to Mouth Respiration) देते समय मरीज और सहायता प्रदान करने वाले के मुंह एक दूसरे से लॉक रहते हैं जिससे हवा बाहर नहीं निकालनी चाहिए। मुंह से मरीज को सांस देने को बचाव की सांसें (Rescue Breath) कहते हैं। Rescue Breath देने का अनुपात 30:02 रखा जाता है, अर्थात 30 बार चेस्ट कंप्रेशन करने के बाद और दो बार Rescue Breath देनी है। यह चक्र चलाते रहना है।
माउथ-टू-माउथ विद हैंड प्रेस CPR केवल हाथों से CPR देने से अधिक कारगर उपाय होता है क्योंकि इसमें मरीज के शरीर को ऑक्सीजन मिलने की संभावना केवल हाथों द्वारा CPR देने से अधिक होती है जिससे मरीज के जीवन रक्षा की संभावना (Survival Chance) बढ़ जाती है।
बचाव की सांसें (Rescue Breath) देने का तरीका
बचाव की सांसें (Rescue Breath) देते समय मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से साँस दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि नाक बंद होने पर ही मुंह से दी गयी सांस फेफड़ों तक पहुंच पाती है।
Rescue Breath देने वाला व्यक्ति खुद लंबी सांस लेकर मरीज के खुले मुंह से मुंह चिपकाए और फिर जोर और गहराई से लम्बी देर तक हवा मरीज के मुंह में छोड़े। ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भर जाएगी। इस प्रक्रिया में मरीज की छाती फूल कर ऊपर उठनी चाहिए। ये प्रक्रिया तब तक जारी रखी जाती है जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे।
सीपीआर अगर किसी बच्चे को देनी है तो विधि में थोड़ी सावधानी बरतनी होती है। बच्चों की हड्डियां कोमल व कमजोर होती हैं इसलिए उनकी छाती पर दबाव डालते समय विशेष ध्यान रखा जाता है। एक वर्ष से कम आयु के बच्चों को CPR देने के 2 या 3 उंगलियों से ही छाती पर दबाव डाला जाता है और Rescue Breath देने का अनुपात 30:02 ही रखा जाता है, अर्थात 30 बार चेस्ट कंप्रेशन करने के बाद और दो बार Rescue Breath देनी है
माउथ टू माउथ रेस्पिरेशन (Mouth to Mouth Respiration) देने में खतरा
माउथ टू माउथ रेस्पिरेशन (Mouth to Mouth Respiration) देने में यह खतरा होता है कि इसमें Rescue Breath देने वाले और पीड़ित व्यक्ति का एक दूसरे से संक्रमित होने का खतरा होता है। लेकिन हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि यदि किसी मरते हुए व्यक्ति की जान बचानी हो तो यह खतरा मोल लिया जा सकता है।
अब हम AED के बारे में समझते हैं 👇
CPR मुख्य रूप से दिल का दौरा पड़ने की स्थिति में प्रयोग किए जाने वाली तकनीक है लेकिन कार्डियक अरेस्ट (Cardiac Arrest) हो जाने पर केवल CPR पर्याप्त नहीं होता उस समय मरीज की जीवन रक्षा के लिए CPR के साथ साथ AED का इस्तेमाल भी करना पड़ता है
AED अर्थात (Automated External Defibrillator – स्वचालित डिफाइब्रिलेटर) एक जीवनरक्षक चिकित्सा उपकरण है जो रोगी को अचानक कार्डियक अरेस्ट की स्थिति में मरीज के दिल तक बिजली के झटके (डिफिब्रिलेशन) को पहुंचाने के लिए उपयोग में लाया जाता है जिससे मरीज के दिल में रुक चुकी विद्युत तरंगों (Electric Impulses) को पुनः प्रारंभ किया जा सके
आपने अक्सर फिल्म या टीवी सीरियल में देखा होगा कि डॉक्टर मरीज की सीने पर इलेक्ट्रिक प्लेट को छुवाते हैं जिससे मरीज की चेस्ट में झटका उत्पन्न होता है और वह ठीक होने लगता है, उसी इलेक्ट्रिक प्लेट को AED कहा जाता है ।
स्वचालित डिफाइब्रिलेटर AED को इस तरह बनाया गया है एवं डिजाइन किया गया है कि कोई ऐसा व्यक्ति भी इसका इस्तेमाल कर पाए जिसके पास कोई चिकित्सा प्रशिक्षण (Medical Training) नहीं है, लेकिन वह थोड़ा बहुत प्राथमिक चिकित्सा के बारे में जानकारी रखता हो। मरीज को आपातकालीन चिकित्सा सेवा मिलने तक इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्वचालित डिफाइब्रिलेटर के इस्तेमाल का फायदा यह है कि यह रोगी के बंद पड़ चुकी धड़कन को पुनः शुरु कर उसे पुनर्जीवित करने में मदद करता है और रोगी को विशेष चिकित्सा मिलने तक रोगी की हालत को स्थिर रखने में मदद करता है। दिल का दौरा या कार्डियक अरेस्ट पड़ने वाले व्यक्ति को जितनी जल्दी हो सके, डिफिब्रिडेट नहीं किया जाता है तो उनके जीवित रहने की संभावना हर गुजरते मिनट के साथ घटती चली जाती है।
AED द्वारा रुक चुकी दिल की धड़कन को फिर शुरू करने की प्रक्रिया को आप इस तरह समझ सकते हैं जैसे बैटरी डिस्चार्ज होने जाने के कारण रुक गई गाड़ी को धक्का मार कर फिर स्टार्ट करना, जिसके बाद गाड़ी अपनी यात्रा पर पहले की तरह चल पड़ती है।
कई विकसित देशों में सार्वजनिक और भीड़भाड़ वाले स्थानों जैसे स्टेडियम, शॉपिंग मॉल, हवाई अड्डों आदि में स्वचालित डिफाइब्रिलेटर उपलब्ध कराना अनिवार्य है जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्या (Emergency) होने पर किसी पीड़ित की जान बचाई जा सके।
निष्कर्ष
CPR को सही ढंग से निष्पादित करने का तरीका और AED का प्रयोग जानना एक जीवन रक्षक कौशल (Life Saving Skill) है जो आपात स्थिति में लोगों की जान बचा सकता है। सरकार को इस ज्ञान और कौशल का अधिक से अधिक प्रचार प्रसार आम लोगों में करना चाहिए और इसे स्कूल और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।
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Jai ho philosopher hai guru G Aap to
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