An Introduction To Physical Education
Physical Education is way of education through physical activities, games & sports and yoga to teach students the essence of life imparting essential values in them and ensuring their allround development in the form of Physical, Mental, Social and Emotional Development
शारीरिक शिक्षा का परिचय
subtopics of this article
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शारीरिक शिक्षा का अर्थ परिभाषा एवं महत्व
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शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य उद्देश्य एवं क्षेत्र
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वर्तमान युग में शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता
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शारीरिक शिक्षा एवं सामान्य शिक्षा में संबंध
शारीरिक शिक्षा का अर्थ परिभाषा एवं महत्व:
शारीरिक शिक्षा का अध्ययन करने से पूर्व यह आवश्यक है कि हम शिक्षा शब्द का अर्थ समझें
शिक्षा
सामान्य शब्दों में ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया से है जिसमें वर्तमान पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी से उनके द्वारा संचित ज्ञान एवं अनुभव का अर्जन करती है तथा उसे परिमार्जित करके उसे आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करती है। ज्ञान अर्जन एवं उसके हस्तांतरण की यह प्रक्रिया अनादिकाल से चली आ रही है।
शिक्षा एक निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात क्षमताओं का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में वांछित परिवर्तन ला कर उसे उसके परिवार, समाज एवं राष्ट्र के विकास में योगदान करने हेतु एक उपयोगी नागरिक बनाने का प्रयास किया जाता है।
शिक्षा का प्रकार औपचारिक अथवा अनौपचारिक हो सकता है परंतु उसका लक्ष्य सदैव एक सभ्य एवं सुसंस्कृत नागरिक तैयार करना होता है।
शारीरिक शिक्षा
शारीरिक-शिक्षा में ‘शारीरिक’ शब्द से ही पता लगता है कि है यह शरीर एवं शारीरिक क्रियाओं से संबंधित शिक्षा है।
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का एक अभिन्न अंग है जिसका लक्ष्य विभिन्न शारीरिक क्रियाओं व खेल गतिविधियों द्वारा छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना होता है । सर्वांगीण विकास के अंतर्गत मुख्य रूप से शारीरिक विकास, मानसिक विकास, सामाजिक विकास व भावनात्मक विकास आते हैं।
मनुष्य का शरीर ही शारीरिक शिक्षा का आधार होता है साथ मनुष्य का शरीर ही उसके अस्तित्व का पहला परिचय होता है।
उपनिषद में लिखित श्लोक ‘शरीरमाद्यंम खलु धर्मसाधनम्’ शरीर की महत्ता को इंगित करता है। इसका अर्थ यह है कि शरीर ही समस्त कर्तव्यों को पूर्ण करने का साधन है अतः इस शरीर को स्वस्थ रखना तथा उसकी क्षमताओं में विस्तार करना प्रथम लक्ष्य होना चाहिए।
शारीरिक शिक्षा की सामान्य परिभाषा
शारीरिक शिक्षा शारीरिक क्रियाओं व खेलों के माध्यम से प्रदान की जाने वाली वह शिक्षा है जिसका लक्ष्य विद्यार्थी का संपूर्ण (सर्वांगीण) विकास करना होता है। जिसके अंतर्गत विद्यार्थी के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं भावनात्मक विकास के क्षेत्र आते हैं।
विभिन्न शारीरिक शिक्षाविदों ने शारीरिक शिक्षा की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं, समस्त परिभाषाएं विद्यार्थी के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास पर ही केंद्रित हैं।
शारीरिक शिक्षा विदों द्वारा दी गई कुछ परिभाषाएं निम्न हैं
शारीरिक-शिक्षा शिक्षा का वह अंग है जो कि व्यक्ति को शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से प्रशिक्षित कर उसके विकास को सुनिश्चित करता है। :ए.आर. वेमैन (A.R.Wayman)
शारीरिक शिक्षा शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा है जो कि छात्र में शरीर, मन एवं आत्मा की पूर्णता हेतु होती है। :जे.पी. थॉमस (J.P.Thomas)
शारीरिक क्रियाओं पर केंद्रित अनुभवों के माध्यम से व्यक्ति में आने वाले संपूर्ण परिवर्तनों के संकलित रूप को ही शारीरिक शिक्षा कहते हैं :रोजलिंड कैसेडी (Rosalind Cassidy)
शारीरिक शिक्षा संपूर्ण शिक्षा तंत्र का वह बिंदु है जो कि शारीरिक बल से संबंधित क्रियाओं वह उनकी प्रतिक्रियाओं से संबंधित है :जे.बी. नैश (J.B.Nash)
शारीरिक शिक्षा विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से प्राप्त होने वाले अनुभवों का संकलन है :डैलबर्ट ओवरट्यूफर (Delbert Oberteuffer)
शारीरिक शिक्षा, संपूर्ण शिक्षा तंत्र का एक अभिन्न अंग है जिसका उद्देश्य परिणामों को दृष्टिगत रखकर चुनी गई शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से विद्यार्थी की मानवीय क्षमताओं का विकास करना होता है :चार्ल्स ए. बुकर (Charls A. Bucher)
शारीरिक शिक्षा बाहुबल वाले क्रियाकलापों में भागीदारी के माध्यम से अर्जित अनुभवों का संकलन है जोकि व्यक्ति के अधिकतम संभव वृद्धि एवं विकास को प्रोत्साहित करता है। :ब्राउनवेल (Brownwell)
शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा प्रणाली का एक अंग है जो कि बाहुबल युक्त शारीरिक क्रियाकलापों के माध्यम से विद्यार्थी की वृद्धि एवं विकास से संबंधित है। यह शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से छात्र की संपूर्ण शिक्षा है। शारीरिक क्रियाकलाप छात्र में परिवर्तन लाने के उपकरण हैं जिनका चयन एवं संपादन इस तरह किया जाता है कि वे विद्यार्थी के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं नैतिक पक्ष को प्रभावित करते हैं। :एच. सी. बक (H.C. Buch)
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शारीरिक शिक्षा का महत्व
शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेने से छात्र में विभिन्न प्रकार के गुणात्मक परिवर्तन आते हैं जो कि निम्नवत हैं
शारीरिक विकास (Physical Development)
खेल एवं शारीरिक शिक्षा सहित समस्त क्रियाओं में भाग लेने के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं फिट होना सबसे पहली आवश्यकता होती है। शारीरिक विकास ही अन्य सभी योग्यताओं के विकास का आधार है। खेल एवं शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं का नियमित अभ्यास से विद्यार्थियों का वांछित शारीरिक विकास सुनिश्चित किया जाता है । खेल एवं शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं में नियमित अभ्यास से होने वाले शारीरिक लाभ निम्नलिखित हैं👇
1- बेहतर स्वास्थ्य व फिटनेस की प्राप्ति
2- श्वसन, परिसंचरण, पाचन तंत्र एवं हृदय की कार्य क्षमता बढ़ती है. मांसपेशिया, अस्थियां एवं जोड़ शक्तिशाली एवं मजबूत बनते हैं। प्रतिरक्षा और अन्य सभी शारीरिक प्रणाली को बेहतर होती हैं
3- बेहतर स्वास्थ्य के कारण कार्य क्षमता (efficiency) में वृद्धि
4- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) में वृद्धि
5- मोटापे व अनावश्यक बढ़ते वजन पर नियंत्रण
6- सुस्त-शिथिल अथवा दौड़-भाग भरी जीवन शैली से जनित रोग जैसे डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, यूरिक एसिड व मानसिक तनाव आदि से छुटकारा
7- सामान्य बीमारियों के कारण एवं उनके निवारण की जानकारी
मानसिक विकास (Mental Development)
पुरानी कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है और व्यक्ति की समस्त स्थितियों परिस्थितियों को समझने की क्षमता व उन पर निर्णय लेने की क्षमता मस्तिष्क पर ही निर्भर करती है अतः मस्तिष्क का स्वस्थ वह संतुलित रहना बहुत आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेने पर निम्न प्रकार के मानसिक विकास सहज ही हो जाते हैं
1- परिस्थितियों के शीघ्र आकलन करने की क्षमता का विकास
2- तुरन्त निर्णय लेने की क्षमता का विकास
3- समस्याओं का त्वरित समाधान करने की क्षमता का विकास
4- विषम परिस्थितियों में धैर्य ना खोने के गुण का विकास
5- रणनीति बनाना
सामाजिक विकास (Social Development)
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है और समाज के प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता व उसका आचरण सामाजिक परिवेश को प्रभावित करता है। शांतिपूर्ण सामाजिक जीवन हेतु प्रत्येक व्यक्ति के अंदर विभिन्न सामाजिक गुणों का होना अत्यावश्यक होता है जो कि उसे समाज का एक उपयोगी अंग बनने में सहायक होते हैं। शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेने पर छात्र में निम्न सामाजिक गुणों का सहज विकास हो जाता है
1- खेल भावना और टीम भावना का विकास
2- सफलता अथवा कार्य सिद्धि के लिए के लिए सहयोग व त्याग जैसे गुणों का विकास
3- नियमों के पालन करने का गुण तथा नियामक संस्थाओं के सम्मान का गुण
4- नेतृत्व क्षमता का विकास
5- नेतृत्व के निर्देशों एवं आदेशों का पालन करने का गुण
6- अपने दायित्व और कर्तव्यों को समझने व उन्हें पूर्ण करने का गुण
7- लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों का महत्व समझना
8- योग्यता का सम्मान करने का गुण
9- सामाजिक व धार्मिक सद्भाव व समरसता को बनाए रखने का गुण
10- राष्ट्रीय एकता एवं अंतरराष्ट्रीय सद्भाव का प्रचार व प्रसार
11- चारित्रिक विकास एवं खाली समय का सदुपयोग
12- आवश्यक नैतिक गुण जैसे ईमानदारी, समर्पण, निष्ठा, सहनशीलता, अधिकार एवं कर्तव्य के प्रति संवेदनशीलता व मानवीय मूल्यों का विकास
भावनात्मक विकास (Emotional Development)
प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अनेक प्रकार की सहज भावनाएं होती हैं जैसे प्रेम, समर्पण, हर्ष, दया, उत्साह, निराशा, भय, एकाकीपन, क्रोध, घृणा, कुंठा, बदले की भावना, लोभ, ईर्ष्या आदि।
कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति की विभिन्न भावनाएं जागृत हो सकती हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भावनाओं पर नियंत्रण आवश्यक होता है और यदि भावनाओं का प्रदर्शन आवश्यक हो तो वह नियंत्रित वह स्वीकार्य रूप में होनी चाहिए।
शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में छात्र को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने अथवा नियंत्रित करने के अनेक अवसर स्वाभाविक रूप से प्राप्त होते हैं जिसके फलस्वरुप छात्र भावनात्मक रूप से अधिक संतुलित वह सक्षम बनता है।
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शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य उद्देश्य एवं क्षेत्र- Aims, Objectives & Scope of Physical Education
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य
शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य के बारे में जानने से पहले लक्ष्य एवं उद्देश्य के बीच में अंतर जानना आवश्यक है।
लक्ष्य – Aim
किसी कार्य को करने का अंतिम अथवा चरम उद्देश्य ही लक्ष्य (Ultimate Goal) लक्ष्य कहलाता है। कोई भी कार्य बिना लक्ष्य के नहीं किया जाता है।
उद्देश्य – Objectives
अंतिम लक्ष्य (Aim) प्राप्ति करने से पूर्व हमें अनेक छोटे-छोटे कार्य पूर्ण करने होते हैं जिन्हें किए बिना हम अपने अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते।
अंतिम उद्देश्य की प्राप्ति की प्रक्रिया में किए जाने वाले आवश्यक कार्य जिनके बिना लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सकता, उद्देश्य कहलाते हैं।
उदाहरण के लिए किसी भी खिलाड़ी के लिए ओलंपिक खेलों में पदक जीतना उसका अंतिम लक्ष्य (Aim) होता है।
उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे आवश्यक रूप से सर्वप्रथम अपने प्रदेश स्तर पर फिर राष्ट्रीय स्तर पर और फिर ओलंपिक की योग्यता प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त कर चयनित होना होगा तभी उसे ओलंपिक में भाग लेने की पात्रता प्राप्त होगी। तथा ओलंपिक में भी अनेक योग्यता चक्रों को पार करने के बाद ही वह पदक जीत सकता है। यदि वह उपरोक्त में से किसी भी स्तर असफल रहता है तो वह ओलंपिक तक नहीं पहुंच सकता।
विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करना ही शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य है। संपूर्ण विकास के अंतर्गत शारीरिक विकास, मानसिक विकास, सामाजिक विकास एवं भावनात्मक विकास आते हैं।
विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की प्राप्ति तभी संभव है जब विद्यार्थी के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं भावनात्मक पक्षों के विकास के उद्देश्य पूर्ण हो जाएं।
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य
विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निम्न उद्देश्यों की पूर्ति आवश्यक है
शारीरिक विकास का उद्देश्य
शारीरिक विकास शारीरिक शिक्षा का सर्वप्रथम उद्देश्य है क्योंकि विद्यार्थी के अंदर अन्य समस्त प्रकार के विकास तभी संभव होते हैं जब विद्यार्थी शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं क्रियाशील हो।
शारीरिक शिक्षा में विद्यार्थी की आयु एवं शारीरिक क्षमता के आधार पर उसके लिए विशेष प्रकार की शारीरिक क्रियाओं व खेलों का कार्यक्रम तैयार किया जाता है जिससे छात्र के समस्त तंत्र जैसे परिसंचरण तंत्र, श्वसन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, पेशीय तंत्र, कंकाल तंत्र, पाचन तंत्र आदि अच्छी प्रकार विकसित हो सकें।
इसके इसके अतिरिक्त विद्यार्थी को अच्छी स्वास्थ्य शिक्षा भी दी जाती है जिससे विद्यार्थी स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हो सके व अपने समस्त कार्य अच्छी क्षमता व दक्षता के साथ कार्य कर सकें व देश के लिए एक उपयोगी नागरिक बन सकें।
स्नायु-पेशीय समन्वय का विकास (Neuro-Muscular Coordination)
किसी भी कार्य को ठीक प्रकार से करने के लिए हमारे तंत्रिका तंत्र व पेशीय तंत्र के बीच अच्छा समन्वय होना बहुत आवश्यक होता है। विभिन्न शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों व खेलों में निरंतर भाग लेने से यह क्षमता विकसित हो जाती है। अच्छे स्नायु-पेशीय समन्वय से हम लोग अपने कार्य अधिक कुशलता के साथ कर सकते हैं।
मानसिक विकास का उद्देश्य
अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य एवं अच्छा मानसिक स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक होते हैं।
शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों एवं खेलों में भाग लेने के लिए मानसिक सतर्कता, एकाग्रता वह सधी हुई शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता होती है।
खेलों में अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए खिलाड़ी को चतुर, तार्किक, तेजी से निर्णय लेने वाला, स्थितियों का तुरंत आकलन करने वाला होना चाहिए जो कि अच्छे मानसिक विकास की कारण ही संभव होता है।
इसके अतिरिक्त खिलाड़ी को खेल नियमों की जानकारी, खेल तकनीक का ज्ञान, एनाटॉमिकल और फिजियोलॉजिकल ज्ञान, संतुलित आहार की जानकारी, स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति जागरूकता का ज्ञान भी अति आवश्यक होता है। साथ ही खेलों में सफलता के लिए खिलाड़ी को उचित योजना एवं रणनीति बनाने की भी आवश्यकता होती है जोकि बुद्धि चातुर्य से ही संभव होता है।
इस प्रकार शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों व खेलों में निरंतर भाग लेने से विद्यार्थी के मानसिक विकास की उद्देश्य की प्राप्ति सहज रूप से हो जाती है।
सामाजिक विकास का उद्देश्य
सामाजिक विकास से तात्पर्य है कि विद्यार्थी के अंदर आवश्यक सामाजिक गुणों का विकास हो जिससे कि वह अपने समाज में बेहतर समायोजन के साथ रहे व समाज के लिए एक उपयोगी अंग बन सके।
शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम व खेलों में निरंतर भाग लेने से छात्र के अंदर अनेक सामाजिक गुण अभी के सच्चे होते हैं, जैसे
- खेल भावना और टीम भावना का विकास
- सहयोग व त्याग की भावना
- नियमों के पालन करना व नियामक संस्थाओं के सम्मान करना
- नेतृत्व क्षमता
- नेतृत्व के निर्देशों एवं आदेशों का पालन करना
- अपने कर्तव्यों को समझना
- मानवीय मूल्यों का महत्व समझना
- योग्यता का सम्मान करना
- सामाजिक व धार्मिक सद्भाव व समरसता को बनाए रखने जैसे गुणों का विकास स्वाभाविक रूप से होता है।
भावनात्मक विकास का उद्देश्य
प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अनेक प्रकार की सहज भावनाएं होती हैं जैसे प्रेम, समर्पण, हर्ष, दया, उत्साह, निराशा, भय, एकाकीपन, क्रोध, घृणा, कुंठा, बदले की भावना, लोभ, ईर्ष्या आदि।
कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति की विभिन्न भावनाएं जागृत हो सकती हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भावनाओं पर नियंत्रण आवश्यक होता है और यदि भावनाओं का प्रदर्शन आवश्यक हो तो वह नियंत्रित वह स्वीकार्य रूप में होनी चाहिए।
शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में छात्र को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने अथवा नियंत्रित करने के अवसर स्वाभाविक रूप से प्राप्त होते हैं जिसके फलस्वरुप छात्र भावनात्मक रूप से अधिक संतुलित वह सक्षम बनता है
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शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र (Scope of Physical Education)
शारीरिक शिक्षा केवल कुछ शारीरिक क्रिया अथवा खेलों तक ही सीमित नहीं है, इसका अपना एक व्यापक क्षेत्र है जिसमें कई विषयों व विधाओं का समावेश है। शारीरिक शिक्षा एवं खेल क्षेत्र की व्यापकता निम्न विषयों के माध्यम से समझी जा सकती है
1.योग शिक्षा (Yoga) : योग विश्व कल्याण के लिए भारत का विश्व को एक अनुपम उपहार है। योग एक संपूर्ण जीवन पद्धति है जिसे अब वैश्विक मान्यता मिल चुकी है। योग का अभ्यास व योग का अध्ययन व अध्यापन संपूर्ण विश्व में जारी है। योग शिक्षा शारीरिक शिक्षा एक दूसरे की पूरक हैं।
2.खेल समाज विज्ञान (Sports Sociology)
इसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि खेल किस प्रकार छात्र के समाजीकरण में सहायक होता है तथा खेल किस प्रकार सामाजिक संबंधों को प्रभावित करते हैं।
3. खेल मनोविज्ञान (Sports Psychology) : इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि खेल किस प्रकार व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करते हैं और खेलों में सफलता प्राप्त करने के लिए मनोविज्ञान किस प्रकार सहायक होता है।
4.खेल चिकित्सा (Sports Medicine)
इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार चिकित्सा शास्त्र खिलाड़ियों के प्रदर्शन में सुधार लाने में सहायक हो सकता है साथ ही खिलाड़ियों को चोट से बचाने में , घायल खिलाड़ियों के उपचार एवं उनकी खोई हुई प्रदर्शन क्षमता को वापस लाने व उसमें वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है।
5-कायिक चिकित्सा (फिजियो थेरेपी -Physiotherapy)
इसमें बिना दवाओं का प्रयोग के केवल शारीरिक क्रियाओं व व्यायाम द्वारा रोगी की अस्थियों व पेशियों से संबंधित चोट व बीमारियों का उपचार किया जाता है तथा कमजोर पड़ गए अंगों को पुनः सबल व क्रियाशील बनाने का प्रयास किया जाता है।
6-खेल आहार विज्ञान (Sports Nutrition)
इसमे व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं उसके खेल प्रदर्शन पर आहार के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त खिलाड़ियों की खेल व उनकी क्षमता के अनुसार उनकी आहार का निर्धारण भी किया जाता है
7-खेल दर्शन (Sports Philosophy)
इसमें खेल व शारीरिक शिक्षा से संबंधित प्रचलित इतिहास, परंपराओं, मान्यताओं का अध्ययन एवं विभिन्न विद्वानों द्वारा उन पर अपने व्यक्त विचार, मत, टीका, टिप्पणिओं, समालोचनाओं की विवेचना की जाती है।
8-खेल प्रबंधन (Sports Management)
इसके अंतर्गत खेल व शारीरिक शिक्षा के प्रबंधन से जुड़े हुए कार्य जैसे खेल प्रतियोगिता का आयोजन, संस्थाओं में खेल कार्यक्रमों का प्रबंधन, खेल बजट, खेल कैलेंडर का निर्माण, खेल सुविधाओं का निर्माण आदि का क्रियान्वयन किया जाता है।
9-खेल इंजीनियरिंग (Sports Engineering)
यह विभिन्न प्रकार के खेल उपकरणों का निर्माण, खेल सुविधाओं जैसे ट्रैक, खेल मैदान, स्टेडियम, स्विमिंग पूल, ऑडिटोरियम आदि का निर्माण आदि से संबंधित क्षेत्र है
10-खेल पत्रकारिता (Sports Journalism)
यह खेलों की मीडिया कवरेज से संबंधित क्षेत्र है। इसमें अखबारों व मैगजीन में खेलों की रिपोर्टिंग, खबरों व आर्टिकल का लेखन, खेल प्रतियोगिताओं का सजीव प्रसारण, कमेंट्री, खिलाड़ियों का इंटरव्यू जैसे कार्य आते हैं
11-खेल यांत्रिकी (खेल बायोमैकेनिक्स Sports Biomechanics)
इसमें खेलों के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा की जाने वाली गतियों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है जिसका उद्देश्य खिलाड़ियों की तकनीक में अपेक्षित सुधार लाकर उनके प्रदर्शन को बेहतर करना होता है।
12- खेल फैशन डिजाइनिंग (Sports Fashion Designing)
खेल फैशन डिजाइनिंग के माध्यम से खिलाड़ियों के उपकरण व उनकी पोशाक को अधिक आकर्षक एवं सुविधाजनक बनाया जाता है जो कि उनके उनके खेल प्रदर्शन को बेहतर करने में और अधिक सहायक हों जाएं।
13- दिव्यांग लोगों के लिए शारीरिक शिक्षा एवं खेल (Para Sports)
इसमें कुछ विशेष प्रकार से सक्षम खिलाड़ियों (Differently Abled Athletes) हेतु खेल कार्यक्रमों का निर्धारण, उनके लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन व उनके लिए विशेष उपकरण व सुविधाओं के निर्माण का अध्ययन किया जाता है।
14- आत्मरक्षा हेतु मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण : प्रत्येक व्यक्ति को, विशेष रूप से महिलाओं को, आत्मरक्षा हेतु प्रशिक्षित होना अनिवार्य होना चाहिए। बहुत सारे कांबैट खेल हैं जैसे बॉक्सिंग, कुश्ती, जूडो, कराटे, ताइक्वांडो इत्यादि जिनके प्रशिक्षण से व्यक्ति का शारीरिक शक्ति एवं आत्मविश्वास बढ़ जाता है जिससे वह आत्मरक्षा के साथ-साथ दूसरों की रक्षा करने में भी सक्षम हो जाता है। इसके साथ-साथ आजकल सरकार द्वारा भी मिशन शक्ति जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण विशेष रूप से दिया जा रहा है।
15- साहसिक खेल एवं पर्वतारोहण – साहसिक खेल एवं पर्वतारोहण में भाग लेने से युवाओं में शक्ति, साहस, अनुशासन, धैर्य एवं संयम का विकास होता है। युवाओं को साहसिक खेल एवं पर्वतारोहण में प्रशिक्षित करने के लिए सरकार द्वारा अनेक पर्वतीय, समुद्र तटीय एवं पर्यटक स्थलों पर प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं।
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वर्तमान युग में शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता
वर्तमान युग मशीनीकरण और कंप्यूटर का युग है जिसमें दिन-प्रतिदिन व्यक्ति की शारीरिक श्रम में कमी आती जा रही है। आज हम अपरिहार्य प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं जिनमें पर्यावरण प्रदूषण, सांस्कृतिक प्रदूषण, सामाजिक विघटन, धार्मिक उन्माद, दोषपूर्ण जीवनशैली द्वारा जनित रोग व बेरोजगारी आदि मुख्य हैं
उपरोक्त समस्याओं के उन्मूलन हेतु शारीरिक शिक्षा एवं खेल एक उपयोगी माध्यम हो सकता है । विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु शारीरिक शिक्षा एवं खेलों की उपयोगिता (महत्त्व) को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है
1. छात्र का समेकित विकास- शारीरिक शिक्षा छात्र का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व नैतिक विकास समेकित रूप से करती है जिससे उसके व्यक्तित्व के बेहतर होने की संभावना बढ़ जाती है।
2. बेहतर स्वास्थ्य एवं फिटनेस की प्राप्ति-
शारीरिक क्रियाओं को खेलों में निरंतर भाग लेने से छात्र का स्वास्थ्य बेहतर बनता तथा फिजिकल फिटनेस बढ़ जाती है जिससे उसकी कार्यक्षमता, थकान सहने की क्षमता, ताकत, लचक आदि क्षमताओं में भी वृद्धि होती है।
3. भावनात्मक विकास
खेल प्रतियोगिताओं में निरंतर भाग लेने से विद्यार्थी भावनात्मक रूप से परिपक्व बनता है क्योंकि खेलों के दौरान बार-बार ऐसी परिस्थितियों का निर्माण होता है जिसमें उसको अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर प्राप्त होता है और जिससे उसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने का अभ्यास होता जाता है। कई बार खिलाड़ी पर विषम परिस्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव होता है, कई बार खिलाड़ी जीतने पर अत्यधिक खुश एवं उत्साहित हो जाते हैं परंतु कभी-कभी हारने पर वे बुरी तरह निराश व हताश हो जाते हैं। यदि खिलाड़ियों का अपनी भावनाओं पर अच्छा नियंत्रण ना हो तो दोनों ही परिस्थितियों में उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। निरंतर खेल अभ्यास एवं प्रतियोगिताओं में भाग लेने से खिलाड़ी भावनात्मक रूप से और अधिक संतुलित हो जाते हैं।
4. सामाजिक समायोजन
खेलों के माध्यम से सामाजिक समायोजन हेतु आवश्यक गुण जैसे खेल भावना, टीम भावना, मित्रता, भाईचारा, आत्मानुशासन, शिष्टाचार, सहयोग, संस्था व नियमों के प्रति आदर आदि गुण विद्यार्थी में सहज रूप से विकसित होते हैं जो कि उसे अपने समाज हेतु उपयोगी अंग एवं एक अच्छा नागरिक बनने में सहायक होते हैं।
5. चारित्रिक विकास
खेलों में निरंतर प्रतिभाग से विद्यार्थी के अंदर चारित्रिक और नैतिक गुणों का सहज समावेश हो जाता है। खेल भावना, टीम भावना, टीम के लक्ष्य प्राप्ति हेतु समर्पण, दृढ़ संकल्प आदि गुण उसकी चारित्रिक विकास को सुनिश्चित करते हैं। इसके अतिरिक्त खेलों में सफलताएं अर्जित करने के लिए निरंतर कड़ा अभ्यास करना पड़ता है तथा सभी प्रकार के व्यसनों जैसे धूम्रपान, मदिरापान, ड्रग्स आदि से दूर रहना पड़ता है, यह सभी बातें विद्यार्थी को चारित्रिक रूप से मजबूत बनाती हैं।
6. सांस्कृतिक विकास
खेल और शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम सांस्कृतिक विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। क्योंकि खेलों में विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के छात्र-छात्रा एक साथ भाग लेते हैं जिससे वे एक दूसरे के रीति-रिवाजों, परंपराओं, जीवन शैली के बारे में परिचित होते हैं जिससे सांस्कृतिक समरसता व विकास को बढ़ावा मिलता है तथा वे अधिक सहिष्णु बनते हैं।
7. अनुशासित व स्वस्थ जीवन शैली
खेलों में निरंतर भाग लेने व उनमें सफलता प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी को कड़े स्वअनुशासन में रहना पड़ता है। जिसमें उसके अभ्यास, भोजन और शयन का समय निर्धारित रहता है, उसे संयमित आचरण करना पड़ता है, बुरी आदतों जैसे धूम्रपान व मद्यपान से दूर रहना होता है। इस प्रकार एक खिलाड़ी का जीवन बहुत ही अनुशासित हो जाता है और यह अनुशासन की आदत उसके व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत सहायक होती है।
8. नेतृत्व गुणों का विकास
एक सफल नेतृत्व देने के लिए के लिए व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास, चतुर बुद्धि, समर्पण, निष्ठा, परिस्थितियों का आकलन करने की क्षमता, दूरदृष्टि जैसे गुणों का होना आवश्यक है। खेल में ऐसे अनेक क्षण आते हैं जब खिलाड़ी को विषम परिस्थितियों में आगे बढ़कर जिम्मेदारियां लेनी पड़ती है तथा नायक के रूप में कार्य करना पड़ता है। खेल का मैदान ऐसे गुणों को विकसित करने की प्रयोगशाला होती है।
9- नेतृत्व के निर्देशों का पालन करने का गुण
खेलों में सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि खिलाड़ी अपने कैप्टन व कोच के निर्देशों का पालन करें उसके लिए आवश्यक है कि उनके अंदर एक अच्छा अनुयाई बनने के गुण भी होने चाहिए और खेलों के माध्यम से खिलाड़ियों में यह गुण बहुत ही अच्छी प्रकार से विकसित होता है।
10. लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास
स्वस्थ खेल परंपरा के माध्यम से खिलाड़ियों में प्रतिभा और योग्यता के सम्मान का गुण विकसित होता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में नागरिकों में इस गुण का विकसित होना बहुत ही आवश्यक है।
11. नागरिकता के गुणों का विकास
खेलों की माध्यम से व्यक्ति के अंदर खेल भावना व टीम भावना विकसित होती है जोकि उसमें अच्छे नागरिकों के गुणों जैसे नियमों को मानना, संस्थाओं का सम्मान करना, साथी लोगों के कल्याण का ध्यान रखना, देशभक्ति की भावना को विकसित करती है।
12. खाली समय एवम् अतिरिक्त ऊर्जा का सदुपयोग
शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियां में भाग लेना खाली समय व अतिरिक्त ऊर्जा के सही उपयोग का सबसे सही तरीका है। यदि विद्यार्थी की अतिरिक्त ऊर्जा व समय का उचित व रचनात्मक उपयोग ना हो तो वह गलत मार्ग पर जा सकता है।
13. खेल मनोरंजन के रूप में
खेल एक मनोरंजन का साधन भी होते हैं जिससे व्यक्ति अपने दैनिक जीवन के मानसिक तनाव व हताशा से मुक्ति पा सकता है। इसके लिए लोग अपनी दिनचर्या में योग, एरोबिक्स, जिम जाना, टहलना, मनोरंजक खेल, फिटनेस कार्यक्रम आदि को शामिल करते हैं
13. शारीरिक शिक्षा एवं खेल एक व्यवसाय के रूप में
शारीरिक शिक्षा एवं खेल को एक व्यवसाय के रूप में अपनाकर जीविकोपार्जन का माध्यम बनाया जा सकता है
शारीरिक शिक्षा एवं खेल से विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का निर्माण होता है जैसे शारीरिक शिक्षा अध्यापन, स्पोर्ट्स कोचिंग, फिटनेस कोचिंग, फिजियोथेरेपी, व्यायामशाला (Gym), खेल पत्रकारिता, खेल प्रबंधन, आहार विशेषज्ञ आदि
14- विद्यार्थियों में तार्किक एवम वैज्ञानिक सोच का विकास
15- देश भक्ति, राष्ट्रीय एकता एवं अंतरराष्ट्रीय सद्भाव का विकास
16- खेलों के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सफलताओं से देश की वैश्विक छवि सकारात्मक बनती है
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शारीरिक शिक्षा एवं सामान्य शिक्षा में संबंध
शारीरिक-शिक्षा शिक्षा का एक अभिन्न अंग है जिसे शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन कहा जा सकता है।
मनुष्य अनेक गुणों से युक्त मनो-शारीरिक (psycho-physical) प्राणी है और शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य की पूर्ति के लिए मनुष्य की बुद्धि एवं शरीर को अलग अलग करके नहीं देखा जा सकता, मनुष्य शरीर मन और आत्मा का एक संगठित रूप होता है।
जब भी शिक्षा के उद्देश्यों की बात होती है तो उसमें विद्यार्थी को केवल शारीरिक रूप अथवा मानसिक रूप से ही विकसित करने की बात नहीं होती अपितु शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं को समेकित रूप से विकसित करने के उपायों पर भी विचार किया जाता है ।
शारीरिक शिक्षा विद्यार्थी के शारीरिक सामाजिक व मानसिक रूप से एकीकृत विकास पर केंद्रित होती है।
खेल का मैदान छात्र के सर्वांगीण विकास की प्रयोगशाला है जिसमें औपचारिक एवं अनौपचारिक माध्यम से ज्ञान एवं जीवन के अनुभव उपलब्ध कराए जाते हैं।
शारीरिक शिक्षा एवं खेलों से प्राप्त अनुभव छात्र ज्ञान देने की अतिरिक्त उसे
- उदार चित व तार्किक बनाते हैं,
- उसकी मुक्त सोच को बढ़ावा देते हैं,
- उसके समाजिक व्यवहार को बेहतर बनाते हैं तथा
- उसमें अच्छे नागरिक के गुण जैसे देशभक्ति, मानवता, नेतृत्व एवं नियमों का पालन करना जैसे गुणों का विकास करते हैं।
- सामान्य शिक्षा की भांति शारीरिक शिक्षा भी छात्र को जीविकोपार्जन के अवसर प्रदान करती है।
शिक्षा अथवा शारीरिक शिक्षा दोनों ही छात्र की सर्वोत्तम विकास पर केंद्रित होती है अतः शारीरिक शिक्षा को एक वैकल्पिक शिक्षा ना मानकर मौलिक शिक्षा के रूप में ही स्वीकार किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि यह भी शिक्षा की भांति छात्र को आगामी जीवन के संघर्षों पर विजय प्राप्त करने के लिए तैयार करती है। अतः कहा जा सकता है कि शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा में वही संबंध है जो कि आत्मा एवं शरीर के बीच होता है एक दूसरे के बिना उनका कोई महत्व नहीं है।
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