For everyone it’s very important to know about the secrets of Body Posture & Body Alignment
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शारीरिक मुद्रा एवं अंग विन्यास की परिभाषा
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अच्छे शारीरिक मुद्रा एवं अंग विन्यास का महत्व
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गलत शारीरिक अंग विन्यास के कारण एवं उसके नुकसान
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शारीरिक अंग विन्यास की सामान्य विकृतियां तथा व्यायाम द्वारा उनका निराकरण
(शारीरिक मुद्रा एवं अंग विन्यास)

शारीरिक मुद्रा (Posture)
प्रत्येक कार्य को ठीक प्रकार से करने के लिए शरीर तथा विभिन्न शारीरिक अंगों को एक विशेष प्रकार की मुद्रा अथवा अवस्था (posture) में रखने की आवश्यकता पड़ती है जिससे वह कार्य कुशलतापूर्वक किया जा सके।
शारीरिक मुद्राओं (Body Posture) से तात्पर्य यह है कि व्यक्ति किस प्रकार अपने सामान्य जीवन की प्रक्रियाएं जैसे चलना, बैठना, उठना, मोबाइल व कंप्यूटर का प्रयोग आदि के समय अपने शारीरिक अंगों को कैसी स्थितियों (मुद्राओं) में रखता है।
विभिन्न खेल क्रियाओं के दौरान भी कुछ विशेष प्रकार की मुद्रा में आना पड़ता है। जैसे दौड़ प्रारंभ होने से पूर्व स्टार्टिंग ब्लॉक से अथवा खड़े-खड़े स्टार्ट लेना, क्रिकेट में बैट्समैन एक विशेष मुद्रा में खड़ा होता है, फुटबॉल में किक मारते समय अलग मुद्रा लेनी होती है, खो-खो में सिटिंग ब्लॉक के अंदर विशेष मुद्रा में बैठा जाता है, निशानेबाजी एवं तीरंदाजी में विशेष प्रकार की शारीरिक मुद्रा में खड़ा होना पड़ता है आदि आदि। सही शारीरिक मुद्रा लेने पर कार्य को अधिक कुशलता से किया जा सकता है
सही शारीरिक मुद्रा (Correct Body Posture)
ठीक शारीरिक मुद्रा (Correct Body Posture) से तात्पर्य है कि सामान्य प्रक्रियाओं जैसे चलना, उठना, बैठना, पढ़ना, लेटना, लिखना, दौड़ना, मोबाइल व कंप्यूटर का प्रयोग करना आदि के दौरान विभिन्न शारीरिक अंगों के बीच सही संतुलन एवं सामंजस्य रहे जिससे किसी अंग विशेष पर अतिरिक्त अथवा अनावश्यक भार ना आए तथा शरीर की कार्य क्षमता प्रभावित ना हो।
एक ही प्रकार की शारीरिक मुद्रा सभी लोगों के लिए ठीक नहीं हो सकती। विभिन्न व्यक्तियों की शारीरिक संरचना, लंबाई एवं वजन के अनुसार एक ही कार्य के लिए विभिन्न लोगों की शारीरिक मुद्राएं अलग-अलग हो सकती हैं।
शारीरिक विन्यास (Body Alignment)
विन्यास (Alignment) शब्द का सामान्य अर्थ वस्तुओं को विशेष प्रकार के क्रम अथवा व्यवस्था में रखना होता है।
शारीरिक विन्यास का सामान्य अर्थ है कि किसी मुद्रा अथवा कार्य के समय विभिन्न शारीरिक अंगों का एक विशेष प्रकार के क्रम अथवा व्यवस्था भी होना। शारीरिक विन्यास को शारीरिक संरेखण भी कहा जाता है।
हमारा शरीर निरंतर गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव में रहता है जिसका जोर हमारी रीढ़ की हड्डी और शरीर के विभिन्न जोड़ों एवं मांस पेशियों पर आता है, और इन्हीं के प्रभाव के अंतर्गत अपने समस्त कार्य करने होते हैं।
शारीरिक विन्यास से तात्पर्य यह है कि किसी मुद्रा के दौरान हमारे विभिन्न शारीरिक अंग जैसे सिर, कंधे, हाथ, रीढ़, पैर, एड़ी, पंजे इत्यादि एक दूसरे से किस प्रकार समायोजन एवं संतुलन की अवस्था में रहते हैं।
किसी भी शारीरिक क्रिया अथवा खेल क्रियाओं को करते समय व्यक्ति के विभिन्न शारीरिक अंग जैसे सिर, कंधे, हाथ, रीढ़, पैर, एड़ी, पंजे इत्यादि परस्पर संयोजन व समन्वय (Coordination) में कार्य करते हैं जिससे व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि हो एवं शारीरिक अंगों पर अनावश्यक जोर ना पड़े
सही शारीरिक विन्यास एवं मुद्राओं का महत्व
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शारीरिक अंग विन्यास अथवा मुद्रा सही होने से शरीर की आकृति व संरचना सही दिखती है जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व पर अच्छा प्रभाव होता है
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सही शारीरिक अंग विन्यास से व्यक्ति की कार्य क्षमता बढ़ जाती है अर्थात वह अपने दैनिक कार्य बहुत आसानी से करता है क्योंकि वह न्यूनतम ऊर्जा के उपयोग से अधिक परिणाम की प्राप्ति कर सकता है
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समस्त अंग संतुलित अवस्था में रहते हैं जिससे रीढ़ की हड्डी, जोड़ो, मांस पेशियों व लिगामेंट्स पर अनावश्यक जोर नहीं पड़ता है
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सही अंग विन्यास अथवा मुद्रा में कार्य करने पर जल्दी थकान नहीं लगती
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सही विन्यास से शरीर के समस्त तंत्र ठीक प्रकार से कार्य करते हैं
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सही अंग विन्यास व्यक्ति के आत्मविश्वास आदि में वृद्धि करता है
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शारीरिक विकृतियां
(Physical Deformities)
गलत जीवनशैली, शारीरिक अस्वस्थता अथवा अन्य कारणों से कभी-कभी मेरुदंड की आकृति में विकृति (दोष) उत्पन्न हो जाते हैं जो कि मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं

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Kyphosis (कायफोसिस – रीढ़ की हड्डी आगे की ओर झुक जाना / कूबड़ निकलना / मेरुदंड की अग्र वक्रता)
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Lordosis (लॉर्डोसिस – रीढ़ की हड्डी पीछे की ओर झुक जाना)(मेरुदंड की पश्च वक्रता)
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Scoliosis (स्कोलियोसिस – रीढ़ की हड्डी एक तरफ मुड़ जाना)
मेरुदंड की विकृतियों के अतिरिक्त निम्न शारीरिक विकृतियां भी उत्पन्न हो होती हैं
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Knock knees and Bow legs (घुटने मिलना तथा धनुषाकार टांग)
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Flat Foot (चपटे तलवे)
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1- Kyphosis (कायफोसिस – कूबड़पन / मेरुदंड की अग्र वक्रता)
कायफोसिस में गर्दन से वक्ष तक की रीढ़ की हड्डी (thoracic spine) में आगे की तरफ झुक जाती हैं, जिससे रोगी के कंधे गोल हो जाते हैं तथा गर्दन आगे की ओर झुक जाती है जिससे गर्दन अथवा ऊपरी पीठ के क्षेत्र में कूबड़ नजर आने लगता है।
कायफोसिस होने के कारण
कूबड़ को अंग्रेजी में हंचबैक (Hunchback), राउंड बैक (Roundback) और काइफोसिस (Kyphosis) कहा जाता है. यह विकृति निम्न कारणों से हो सकती है
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यह रीढ़ की उदरीय क्षेत्र में ताकत की कमी के कारण अथवा उदर क्षेत्र की पेशियों में कमजोरी अथवा ढीलेपन के कारण हो सकता है
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छाती की मसल कमजोर होने से भी रीढ़ आगे की ओर झुक जाती है
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बहुत देर तक झुक कर बैठने की मुद्रा में रहना जैसे देर तक कंप्यूटर अथवा मोबाइल पर कार्य करना
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दुर्घटना में मेरुदंड की चोट के कारण भी यह विकृति संभव है

कायफोसिस (Kyphosis) का योग एवं व्यायाम द्वारा उपचार
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भुजंग आसन, उष्ट्रासन एवं चक्रासन का नियमित अभ्यास
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नियमित सूर्य नमस्कार एवं पुशअप्स (push-ups) करना
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कंप्यूटर अथवा ऑफिस में लंबे समय तक बैठकर कार्य करने के दौरान बीच-बीच में ब्रेक लेना तथा गर्दन, हाथ, पैर, कमर व पीठ की स्ट्रैचिंग करना
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क्षमता से अधिक भार देर तक उठाए रहने से बचना
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2- Lordosis (लॉर्डोसिस – रीढ़ की हड्डी पीछे की ओर झुक जाना – मेरुदंड की पश्च वक्रता)
यह कायफोसिस की विपरीत स्थिति है जिसमें उदर क्षेत्र (Lumbar Region) की रीढ़ की वक्रता पीछे की ओर बढ़ जाती है जिससे मेरुदंड, कंधे व वक्ष क्षेत्र पीछे की ओर झुक जाता है
लॉर्डोसिस होने के कारण
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पेट की मांस पेशियों का कमजोर होना
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मोटापा बढ़ने के कारण
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नितंब की पेशियां कमजोर होना
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दुर्घटना में मेरुदंड की चोट के कारण भी यह विकृति संभव है
योग एवं व्यायाम द्वारा लॉर्डोसिस का उपचार
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नियमित रूप से सिटअप्स (Sit-ups) एवं पुश अप्स (push-ups) करना
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उदर क्षेत्र (पेट) एवं मेरुदंड को सहारा देने वाली की मांसपेशियों को मजबूत करने वाले योगासन का अभ्यास जैसे नौकासन, पश्चिमोत्तानासन, पादहस्तासन, मंडूक आसन एवं शशक आसन का अभ्यास
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3 – Scoliosis (स्कोलियोसिस / रीढ़ की हड्डी एक तरफ झुक जाना)
इसमें रीढ़ की हड्डी गर्दन (सर्वाइकल), वक्ष (थोरेसिक) अथवा कमर (लंबर क्षेत्र) में दाई अथवा बाई ओर झुक जाती है या उसमें वक्रता आ जाती है
स्कोलियोसिस होने के कारण
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अनुवांशिक दोष संक्रमण अथवा बीमारी के कारण मेरुदंड संधियों में क्षरण होना
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एक तरफ की मांस पेशियों का कमजोर होना अथवा लकवा मार जाना
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एक तरफ का पैर का पंजा चपटा हो जाना
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एक तरफ की दृष्टि अथवा सुनने की क्षमता में कमी आ जाना
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व्यवसायिक मजबूरियों के कारण एक तरफ की मांसपेशियों का अधिक उपयोग जिससे मांस पेशियों के में असंतुलन पैदा हो जाता है। जैसे कोई मजदूर लगातार शरीर की एक तरफ से ही भार उठाता रहे तो उसका कंधा एवं मेरुदंड भार उठाने वाली तरफ झुक जाती है।
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निरंतर असमान अवस्था में भार उठाते रहना
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दुर्घटना में मेरुदंड की चोट के कारण भी यह विकृति संभव है
व्यायाम तथा योग द्वारा स्कोलियोसिस का उपचार

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पुल अप्स (pull-ups) स्कोलियोसिस को दूर रखने के लिए सबसे अच्छा व्यायाम है
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ताड़ासन, त्रिकोणासन एवं अर्धमत्स्येंद्रासन विशेष रूप से लाभदायक होते हैं
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सपाट पांव (Flat Foot)
यदि व्यक्ति के सामान्य रूप से खड़े होने पर उसके पैर के तलवे पूरी तरह से जमीन को स्पर्श करते हैं तो ऐसी पैर सपाट पांव कहलाते हैं।
सामान्य तौर पर सीधा खड़ा होने की स्थिति में पैर के तलवे के भीतर की ओर के किनारे जमीन से वक्राकार (गोलाकार) आकृति में थोड़े से उठे होते हैं।
सपाट भाव से व्यक्ति की तेज चलने व दौड़ने की क्षमता कम हो जाती है, इसीलिए सेना एवं सुरक्षा बलों की भर्ती में सपाट पांव वाले अभ्यर्थियों का चयन नहीं किया जाता है।
सपाट अथवा चपटे पांव होने के कारण
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अधिक समय तक क्षमता से अधिक भार उठाना
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पांव के तलवे की पेशियों का कमजोर हो जाना
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अनुवांशिकता के कारण पांव सपाट होना

for treating Flat Foot
सपाट पांव का उपचार
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पांव की पंजों के बल उछलना, रस्सी कूद करना, तथा सीढ़ियां चढ़ना, पंजों के बल साइकिल के पैडल चलाना आदि
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किसी खुरदुरी बेलनाकार सतह पर तलवों को आगे पीछे करना
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सही आर्च वाले जूते पहनने चाहिए
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टाइट जूते पहनकर अधिक समय तक खड़े नही होना चाहिए
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घुटने मिलना (Knock Knees)
जब व्यक्ति के सामान्य रूप से यह पैर मिलाकर खड़े होने पर उसके दोनों घुटने आपस में एक दूसरे को छूते हों तथा व्यक्ति दोनों पैर के पंजों को मिलाकर खड़ा नहीं हो पाए तो ऐसी स्थिति को Knock Knees कहा जाता है
यह समस्या अक्सर महिलाओं में अधिक पाई जाती है तथा कुछ पुरुषों में भी यह जन्मजात हो सकती है।
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धनुषाकार टांगें Bow Legs
जब व्यक्ति के सावधान में खड़े होने की मुद्रा में दोनों घुटनों के बीच में अत्यधिक दूरी हो तथा पैर धनुष के आकार में मुड़े हों ऐसी दोनों को धनुष आकार का कहा जाता है
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शारीरिक अंग विन्यास में विकृतियां आने के मुख्य कारण
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कुपोषण एवं कमजोरी
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अनुवांशिकता
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मानसिक प्रवृत्ति
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बहुत कसे हुए (टाइट) कपड़े पहनना
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बहुत टाइट तथा तलवे में बिना आर्क वाले जूते और चप्पल पहनना
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अत्यधिक थकान एवं सही आराम वह नींद ना मिलना
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क्षमता से अधिक वजन लगातार उठाना तथा लगातार एक तरफ से ही वजन लंबे समय तक उठाते रहना
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मोटापा
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व्यावसायिक मजबूरियां (बहुत देर तक खड़े रहने का कार्य, बहुत देर तक कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठने का कार्य, लगातार अत्यधिक वजन उठाने का कार्य आदि)
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अस्वास्थ्य कर परिस्थितियां (पत्थर अथवा कोयले की खदानों में काम करना, ऐसे स्थान पर कार्य करना जहां पर पर्याप्त मात्रा में हवा एवं रोशनी ना हो)
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अच्छे शारीरिक विन्यास के प्रति जागरूकता की कमी
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कमजोर आर्थिक परिस्थितियां (गरीबी)
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गलत जीवनशैली (असमय भोजन, कंप्यूटर व मोबाइल का अधिक प्रयोग, सही समय पर आराम ना करना इत्यादि)