Just for the sake of welfare of entire humanity ‘Surya Namaskar’ is the ultimate gift presented to this world by Indian culture and yoga tradition
‘सूर्य नमस्कार’ सम्पूर्ण मानवता के कल्याण हेतु इस विश्व को भारतीय संस्कृति और योग परंपरा की ओर से प्रदत्त सर्वश्रेष्ठ उपहार है.
ना केवल पौराणिक बल्कि वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार भी सूर्य इस पृथ्वी पर जीवन और ऊर्जा का स्रोत है. सूर्य देव की अनंत शक्ति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने तथा साधक के अंदर सूर्य के सामान तेज एवं ऊर्जा का संचार करने के उद्देश्य से भारतीय संस्कृति और योग परंपरा में सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने की परम्परा अनादि काल से चली आ रही है। 🌞
सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है और यह अकेला अभ्यास ही साधक के सम्पूर्ण शरीर को सम्पूर्ण योग के लाभ प्रदान करने के लिए पर्याप्त है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। ‘सूर्य नमस्कार’ स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।
सूर्य नमस्कार केवल एक शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि यह सूर्य की ऊर्जा और तेज का आवाहन करते हुए सूर्य से शाक्ति और आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त करने का अनुष्ठान है
सूर्य नमस्कार करने की प्रक्रिया
सूर्य नमस्कार का अभ्यास प्रातः काल सूर्योन्मुख होकर सूर्य के दर्शन करते हुए क्रमशः बारह स्थितियों में किया जाता है. सभी बारह स्थितियों में प्रत्येक स्थिति के लिए एक विशेष मुद्रा होती है एवं प्रत्येक मुद्रा के लिए एक मंत्र का उच्चारण करना होता है
(1) प्रणामासन – दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें।
‘सूर्य भगवान’ का आह्वान ‘ॐ मित्राय नमः’ मंत्र के द्वारा करें।
(2) हस्त उत्तानासन – श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं।
मंत्र – ॐ रवये नमः
(3) उत्तानासन (पादहस्तासन) – तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें।
मंत्र – ॐ सूर्याय नमः
(4) अश्व संचालनासन – इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। मुखाकृति सामान्य रखें।
मंत्र – ॐ भानवे नमः
(5) चतुरंग दण्डासन – श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं।
मंत्र – ॐ खगाय नमः
(6) अष्टांग नमस्कार (साष्टांग दंडवत) – श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। श्वास की गति सामान्य करें।
मंत्र – ॐ पूष्णे नमः
(7) भुजंगासन – इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें।
मंत्र – ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
(8) अधोमुख श्वानासन -चतुरंग दण्डासन (स्थिति 5 की भांति) -श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं।
मंत्र – ॐ मरीचये नमः
(9) अश्व संचालासन (स्थिति 4 की भांति) – इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को आगे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। मुखाकृति सामान्य रखें।
मंत्र – ॐ आदित्याय नमः
(10) उत्तानासन (पादहस्तासन) (स्थिति 3 की भांति) – तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
मंत्र-ॐ सवित्रे नमः
(11) हस्त उत्तानासन (स्थिति 2 की भांति) – श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं।
मंत्र – ॐ अर्काय नमः
(12) प्रणामासन -यह स्थिति 1 की भाँति रहेगी।
मंत्र – ॐ भास्कराय नमः
सूर्य नमस्कार के लाभ :
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सूर्य नमस्कार सम्पूर्ण शरीर को व्यायाम और योग के समस्त लाभ प्रदान करने की एक सहज और सुलभ विधि है
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सूर्य नमस्कार बारह स्थितियाँ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं।
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सूर्य नमस्कार शरीर को बलिष्ठ और लचीला बनाता है।इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है।
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सूर्य नमस्कार रक्त संचार को सुचारु बनाता है।
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गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर चपल एवं स्फूर्त बनता है।
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सूर्य नमस्कार के इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है।
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सूर्य नमस्कार के अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं।
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चित्त की स्थिरता, मानसिक शांति और एकाग्रता प्रदान करता है।
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प्रतिदिन प्रातः काल में नियमित रूप से सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने से दिनभर शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का उच्च स्तर बना रहता है।
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सावधानियां- सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थितियां सर्वाइकल एवं स्लिप डिस्क वाले रोगियों के लिए वर्जित हैं।
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