प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का विधि विधान

 

प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का विधि विधान जानिए 

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जैसे-जैसे 22 जनवरी 2024 की तिथि निकट आ रही है एक शब्द ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ बहुत चर्चित और ‘वाइरल’ हो रहा है.

भारतीय जनमानस के सर्वोच्च आराध्य देव श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में निर्मित हो रहे राम मंदिर में 22 जनवरी को भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है जिसकी चर्चा भारत में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में हो रही है. 

प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशिष्ट जन के उपस्थित रहेंगे.

मंदिर में प्रतिमा की स्थापना होने से पूर्व ही ‘प्राण प्रतिष्ठा’ शब्द बहुत ही चर्चित हो चुका है, हर कोई इसके बारे में बात कर रहा है. प्राण प्रतिष्ठा शब्द सुनते ही मन में एक अलौकिक पवित्र अनुभूति होने लगती है 

प्राण-प्रतिष्ठा का अर्थ

‘प्राणप्रतिष्ठा’ दो शब्द ‘प्राण’ और ‘प्रतिष्ठा’ से मिलकर बना है. प्राण का अर्थ होता है जीवन और प्रतिष्ठा का अर्थ होता है किसी वस्तु को स्थापित अथवा प्रतिष्ठित करना अर्थात किसी वस्तु में प्राणों का संचार कर उसे जीवंत कर देना

प्राण प्रतिष्ठा के बारे में जानने से पूर्व  यह उल्लेख करना आवश्यक है कि सनातन धर्म में दो प्रकार के भक्ति मार्ग की संकल्पना है जिन्हें साकार अथवा सगुण और निराकार अथवा निर्गुण ब्रह्म कहा जाता है. 

सगुण (साकार) और निर्गुण (निराकार) भारतीय दर्शन और धार्मिक विचारधारा के दो मुख्य मार्ग हैं. दोनों ही ईश्वर की उपस्थिति और उसके सर्वशक्तिमान होने में अटूट विश्वास रखते हैं लेकिन यह दोनों की ईश्वरीय संकल्पना में मूलभूत अंतर होता है ।

 

सगुण अथवा साकार :

‘सगुण’ शब्द का अर्थ होता है कुछ गुणों अथवा लक्षणों से युक्त और ‘साकार’ का अर्थ होता है एक विशेष आकृति एवं आकार लिए हुए।

सगुण अथवा साकार ब्रह्म ईश्वर की भक्ति का वह मार्ग है जिसमें भक्त अपने आराध्य को मूर्त स्वरूप में देखता और उसके किसी स्वरूप की प्रतिमा, चित्र अथवा प्रतीक की अराधना करता है। भगवान के विष्णु, शिव, दुर्गा, सरस्वती, गणेश, राम, कृष्ण आदि स्वरूप को प्रतिमा के रूप में प्राण प्रतिष्ठित कर उसकी पूजा अर्चना करना सगुण अथवा साकार ब्रह्म के उदाहरण हैं। 

निर्गुण अथवा निराकार :

निर्गुण का अर्थ होता है ‘गुणों से रहित’ और ‘निराकार’ का अर्थ होता है बिना किसी आकृति अथवा आकार का होना। निर्गुण अथवा निराकार दर्शन में भगवान को सर्वशक्तिमान परंतु किसी गुण, आकार अथवा आकृति से परे, अव्यक्त और अद्वितीय माना जाता है। 

निराकार ब्रह्म को मानने वाले भक्त ईश्वर की सर्वव्यापी सत्ता में अटूट विश्वास रखते हैं लेकिन वे ईश्वर को किसी भौतिक, मूर्त अथवा दृश्य रूप में नहीं बांधते हैं। वे कण कण में ईश्वर मात्र की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं और उन्हें ईश्वर की भक्ति करने के लिए उन्हें किसी भौतिक साधन, स्वरूप, प्रतीक, प्रतिमा अथवा कारण की आवश्यकता नहीं होती.  वे जगत के समस्त प्राणियों को ईश्वर का ही अंश मानते हैं, और उनके अनुसार ईश्वर प्राणी मात्र  के अंतर्मन में बसता है और उसके दर्शन के लिए किसी बाहरी साधन की नही बल्कि अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है. और जैसे-जैसे व्यक्ति सद्भाव व सत्कर्मों की मार्ग पर अग्रसर होता है उसकी अंतर्दृष्टि और अधिक प्रकाशित होती है और वे ईश्वर की निकटता का अनुभव करते हैं.

प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा और उसका महत्व

भक्ति की सगुण ब्रह्म की शाखा में ईश्वर की प्रतिमा के समक्ष उपासना करना सबसे अधिक प्रचलित तरीका है. प्रतिमा का निर्माण किसी कारीगर के हाथों से होता है और इसको निर्मित करने में किसी विशेष प्रकार के पदार्थ जैसे पत्थर, धातु अथवा मिट्टी का प्रयोग हो सकता है. 

जब तक कोई देव प्रतिमा निर्माणाधीन होती है तब तक वह एक कारीगर के हाथों से निर्मित एक भौतिक पिण्ड होती है और कारीगर उसे निर्मित करने का पारिश्रमिक भी प्राप्त करता है.

कोई भी देव प्रतिमा तब तक पूजा के योग्य नहीं मानी जाती है जब तक कि उसे किसी पवित्र स्थान पर स्थापित कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा ना कर ली जाए।

प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का सीधा अर्थ है कि ईश्वर का आवाहन करके उसे ईश्वर को समर्पित कर देना तथा उसमें ईश्वर रूपी प्राणों का संचार कर देना. प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने पर वह प्रतिमा ईश्वरीय उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करने लगती है और वह प्रतिमा पूजनीय हो जाती है. 

प्राण प्रतिष्ठा से ईश्वर रूपी प्राणों का संचार उस प्रतिमा में हो जाता है तथा वह जीवन्त हो उठती जिसकी समक्ष भक्त एवं श्रद्धालु उपासना करके अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकते हैं

प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का विधि विधान

ईश्वर की प्रतिमा के की प्राण प्रतिष्ठा का व्यापक अनुष्ठान होता है जिसमें सर्वप्रथम किसी योग्य पुरोहित अथवा ज्योतिषी द्वारा ईश्वर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त निर्धारित किया जाता है। प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होने से पूर्व प्रतिमा की आंखें एक पट्टी के आवरण से ढकी हुई होती हैं.

वह स्थान जहां पर प्रतिमा को स्थापित किया जाना है उस स्थान को एवं प्रतिमा को अभिमंत्रित कर ईश्वर को समर्पित किया जाता है. इस प्रक्रिया में प्रतिमा स्थापना के स्थान एवं प्रतिमा को अनुष्ठान पूर्वक कई नदियों के जल से स्नान कराया जाता है, तत्पश्चात बीज मंत्रों के उच्चारण के साथ प्रतिमा पर दुग्ध, जल, फल और पुष्प अर्पित करके उसका अद्वितीय श्रृंगार किया जाता है. तत्पश्चात उसे मंत्रोच्चार के साथ अनुष्ठान पूर्वक निर्धारित स्थान पर स्थापित किया जाता है.

प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की अंतिम चरण में प्रतिमा की आंखों से पट्टी का आवरण हटाया जाता है. प्रतिमा की आंखों से पट्टी हटने को इस बात का द्योतक माना जाता है कि प्रतिमा में ईश्वर रूपी प्राणों का संचार हो गया है और ईश्वर उसमें साक्षात स्थापित हो गए हैं. 

सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए वर्ष 2024 का प्रथम महीना अर्थात जनवरी ऐतिहासिक होने वाला है, क्योंकि जनवरी माह की 22 वीं तिथि को अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला (भगवान राम का बाल स्वरूप) की प्रतिमा की अनुष्ठान एवं समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। समस्त श्रद्धालुजन इस बहु प्रतीक्षित पवित्र क्षण का उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं. 

bishtedition.com इस पावन अवसर पर समस्त श्रद्धालुओं को हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता है 

4 thoughts on “प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का विधि विधान”

  1. Arun Kumar Gupta

    निःसंदेह आपके सारगर्भित लेख के माध्यम से पाठकगण ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ के अर्थ को सरल एवं स्पष्ट रूप से समझ जाएंगे। परमात्मा के सगुण और निर्गुण दर्शन की धारणा का विवेचन आपने सरलता से करके विषय की आध्यात्मिक गूढ़ता का सरलीकरण कर दिया है।
    आपका विवेचन द्वैत और अद्वैत के दर्शन को भी प्रस्तुत कर देता है। द्वैत के अन्तर्गत हम परमात्मा को अपने से अलग मानकर उसके सगुण रूप की उपासना करते हैं जबकि अद्वैत के अन्तर्गत हमारा परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है।
    जय श्रीराम ।।।

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