I’m Unwelcomed, but They Can’t Ignore Me
(मजबूरियों का राजघाट हूं)
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जिसकी कोई सुनता नहीं
मैं एक शांति दूत हूं
जिसको कोई बुनता नही
मैं चरखे का काता सूत हूं
पत्थर की एक लकीर हूं
मैं अधनंगा फ़कीर हूं
लुटी पिटी आवाम की
मैं अखिरी जागीर हूं
रुक चुका अभियान हूं
मैं मर चुका अभिमान हूं
खो चुका सबके लिए
मैं मिट चुका निशान हूं
अपनों से हारा हुआ हूं
अपनों का मारा हुआ हूं
उंगलियां सब मुझ पर उठी हैं
मैं आखिरी चारा हुआ हूं
बिना हथियार का मैं युद्ध हूं
स्वयं के ही विरुद्ध हूं
दोष सब मुझ पर लगे हैं
स्वयं से ही मैं क्रुद्ध हूं
समान्य जन क्यों व्यग्र है
भावना क्यों उग्र है
चिन्ताओं का समुद्र है
अनिश्चितताओं में विलीन क्यों
भविष्य ही समग्र है
जिनके राज-पाट हैं
अपूर्व ठाट-बाट हैं
आम सब बेदाम हैं
और भिड़े हुए कपाट हैं
हालात से लड़ा था मैं
तूफान में अड़ा था मैं
था द्वन्द आर पार का
जमीन पर खड़ा था मैं
उड़ चुका गुबार हूं
अनसुनी गुहार हूं
पंख हैं कटे हुए
मैं मर चुका खुमार हूं
हो चुकी एक चूक हूं
सीने में उठती हूक हूं
मल रहा हूं हाथ मैं
बधिर हूं मैं मूक हूं
जो जा चुका वो दौर हूं
अंतिम दिवस का ठौर हूं
जो कभी खिला नही
टूटा हुआ वो बौर हूं
टूटा हुआ संकल्प हूं
बस आखिरी विकल्प हूं
जरूरतें अथाह हैं
मैं न्यून हूं मैं अल्प हूं
मुट्ठी से फिसलती रेत हूं
बारिश में जल गया वो खेत हूं
एक आत्मा अतृप्त सी
भटक रहा एक प्रेत हूं
मैं शून्य में चुपचाप हूं
एकांत वार्तालाप हूं
राख में विलीन हूं
मैं एक पश्चाताप हूं
विवश हूं मैं मौन हूं
पूरा नही मैं पौन हूं
अनभिज्ञ मुझसे क्यों हुए
पूछो जरा मैं कौन हूं
खूंटी पर टंगा हुआ
बेकाम का समान हूं
बेदखल इस रण से मैं
टूटी हुई कमान हूं
बिन राग की मल्हार हूं
बिन चाक का कुम्हार हूं
थम चुका मैं जम चुका
मै शून्य में शुमार हूं
बीता हुआ अतीत हूं
पूरा ही मैं व्यतीत हूं
अब कहां अस्तित्व में
मैं पूर्ण कालातीत हूं
मजबूरियों का सिद्धांत हूं
एकांत मैं नितांत हूं
वे हैं विवश मेरे साथ को
भले ही मैं देहान्त हूं
चिंता भरा ललाट हूं
शांति की अंतिम बाट हूं
हूं विवश और मौन भी
मैं मजबूरियों का राजघाट हूं
शब्द सेवा: विजय बिष्ट ‘पहाड़ी’
www.bishtedition.com
वाह!सर
अप्रतिम कविता।
Very nice and effective sir
आपके प्रोत्साहन हेतु आभार 🙏
Thanks for your support Dear Sir
keep enjoying
Ameging sir
Thanks for your support
ATI Sundar
Thanks Giri ji for your support
Nice sir ji 🙏
Thanks for your support
aravgangwar1990@gmail.com
Great
Thanks Manral ji
अप्रतिम रचना
Thanks for your support 🙏
Heart touching expression. Overwhelmed to read such a treasure.
Sir thanks a lot for your blessings and support 🙏
Best Wishes to you dear Vijay.God bless
Thanks for your encouraging words 🙏
Keep sharing it with your near and dear ones
बेहतरीन लिखा है बिष्ट सर आपने l गांधी जी के व्यक्तित्व के हर आयाम को बारीकी से छुआ हैं।
शुभकामनाये आपको
सादर
thanks for your heart warming encouraging words. big thanks for your support
आपकी इस रचना को पढ़कर लगता है कि आपने ध्यान-साधना के माध्यम से महात्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्सर्जित होने वाली शब्द-तरंगों को आत्मसात करके ही यह उत्कृष्ट रचना लिखी है। इस रचना की महानता यही है कि लगता है कि विजय बिष्ट के स्थान स्वयं महात्मा गांधी अपनी व्यथा सुना रहे हों। इस अमर और कालजयी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई और साधुवाद ।।।
आपने रचना के मर्म को आत्मसात किया,
आपके सार्थक आकलन हेतु हार्दिक आभार 🙏
आपकी इस रचना को पढ़कर लगता है कि आपने ध्यान-साधना के माध्यम से महात्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्सर्जित होने वाली शब्द-तरंगों को आत्मसात करके ही यह उत्कृष्ट रचना रची है। इस रचना की महानता यही है कि लगता है विजय बिष्ट के स्थान पर स्वयं महात्मा गांधी अपनी व्यथा सुना रहे हों। इस अमर और कालजयी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई और साधुवाद ।।।
Wah wah wah shandar Rachana Guru G