How Gandhi became ‘Father of the Nation’ (गांधी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है)

How Gandhi became 'Father of the Nation' (गांधी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है)
How Gandhi became ‘Father of the Nation’ (गांधी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है)

दुनिया उस व्यक्ति को राष्ट्रपिता, बापू और महात्मा जैसे नामों से जानती है। 

The world knows that person by names like Father of the Nation, Bapu and Mahatma.

 

दुनिया के 100 से अधिक देशों में उसकी प्रतिमाएं स्थापित हैं। जिन अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए जिस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन खपा दिया, उन्हीं के देश की संसद के बाहर भी उसकी मूर्ति स्थापित है।

हालांकि धरती पर आज भी कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्हें उस व्यक्ति को राष्ट्रपिता और महात्मा कहे जाने से घोर आपत्ति है। वे लोग उस व्यक्ति से राष्ट्रपिता और महात्मा का खिताब छीनने के लिए इतनी बुरी तरह आमादा हैं कि उस आदमी के इस दुनिया से चले जाने के अर्द्ध शताब्दी से भी अधिक समय हो जाने के बाद भी उसकी टांग खींचने से नहीं चूकते हैं और निरंतर उस व्यक्ति के चरित्र का छिद्रान्वेषण करने में लिप्त रहते हैं। 

उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का जादू (Magic of His Personality) 

मगर उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का कमाल तो देखिए, जितना लोकप्रिय वह अपने देश में है उतना ही लोकप्रिय और शायद उससे भी अधिक लोकप्रिय वह दुनिया भर के देश के लोगों में है। 

चाहे दुनिया का सबसे कमजोर मुल्क हो या सबसे शक्तिशाली राष्ट्र, आज भी दुनिया में उसके नाम की कसमें खाई जाती हैं। कई गुलाम देश उसके सिद्धांतों के सहारे लड़ाई करते-करते आजादी को प्राप्त हुए, उसके सिद्धांतों के कट्टर अनुयाई उसके मन्त्रों के चेलों को नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुए और आज भी दुनिया में बहुत सी लड़ाईयां उसके दिए गए सिद्धांतों के सहारे लड़ी जा रही हैं।

उस व्यक्ति ने अपने लड़ने के अजीबो गरीब तरीकों से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की नाक में इतना दम कर दिया था कि उसके तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill) ने उसे गाली देते हुए एक ‘अधनंगा फकीर’ तक कह डाला था। 

मगर समय की नियति तो देखिए साहब, उस घटना के करीब 100 साल हो जाने के बाद उसी देश की सरकार ने अपने उस पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, जिसने उस आदमी का उपहास करते हुए उसे ‘अधनंगा फकीर’ कह दिया था, जो भारत की आजादी के घोर विरोधी थे और जिसने उस व्यक्ति के आमरण अनशन को झूठा साबित करने के लिए अनशन के दौरान उनका ग्लूकोज टेस्ट तक करा डाला था, उसी ब्रिटेन ने अपने पार्लियामेंट स्क्वायर में उसी चर्चिल महोदय की प्रतिमा के पास में उसी ‘अधनंगे फकीर’ की एक बड़ी कांस्य प्रतिमा स्थापित कर दी है। 

श्री विंस्टन चर्चिल और वह ‘अधनंगा फकीर’ पास पास खड़े होकर क्या बातें करते होंगे ?

आइंस्टीन उस व्यक्ति के बारे में क्या कहते हैं (Einstein’s statement about him)

Einstein with Mahatma Gandhi
Einstein with Mahatma Gandhi

शरीर पर एकमात्र छोटी सी लंगोट पहने हुए दुबला पतला सा व्यक्ति जो कमाल कर रहा था, उससे प्रभावित हो कर दुनिया के महानतम वैज्ञानिकों में से एक सर आइंस्टीन ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा था कि, “आने वाली पीढ़ियों के लिए यह यकीन करना मुश्किल हो जाएगा कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर चला था।” 

 

 

 

 

इतना पढ़ने के बाद तो आप समझ ही नहीं होंगे कि हम मोहनदास करमचंद गांधी के बारे में बात कर रहे हैं जो कि भारत में गांधी जी, महात्मा, राष्ट्र पिता और बापू जैसे नामों से भी लोकप्रिय हैं।

मोहनदास करमचंद गांधी के बापू, महात्मा और राष्ट्रपिता बनने की यात्रा

सबसे पहले गांधी जी को बापू किसने कहा था?

गांधी जी का भारत आगमन

In Gandhi's footsteps, for our health - The Sunday Guardian Live

1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में आशा अनुरूप सफलता नहीं मिलने के बाद स्वतंत्रता के लिए आंदोलन की गति कुछ धीमी रही, लेकिन आजादी के मतवालों के हौंसले बरकरार थे और वे लगातार ब्रिटिश शासन से आजादी पाने के लिए जी जान से संघर्षरत थे। देश के अलग-अलग भागों में अलग-अलग लोगों के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई जारी थी, लड़ाई बिखरी बिखरी सी थी जिससे अंग्रेजों को उनके आंदोलन को कुचलने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती थी। 

तत्कालीन ब्रिटिश शासन, जो न केवल दुनिया की सबसे बड़ी ताकत थी बल्कि दुनिया का लगभग एक चौथाई भू भाग पर उसी का कब्जा था, और जिसके शासन में सूरज कभी डूबता नही था, उसके खिलाफ लड़ना एक असंभव सा काम प्रतीत होता था। 

ब्रिटिश सरकार असाधारण रूप से ताकतवर होने के साथ-साथ बहुत ही चालक, बेइमान और क्रूर भी थी और अपने खिलाफ हो रहे किसी भी विद्रोह को कुचलने के लिए वह साम दाम दण्ड भेद की किसी भी हद तक जा सकती थी। भारतीय लोगों के लिए उस समय की ब्रिटिश हुकूमत से टकराना वैसे ही था जैसे कोई छोटा सा निहत्था बालक भूखे शेर के सामने खड़ा हो।

th?id=OIP1915 में एक साधारण सा व्यक्ति जिसका नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, जो दक्षिण अफ्रीका में एक साधारण सा वकील था मगर उसे एक सिद्धांतकार और संगठनकर्ता के रूप में ख्याति मिल चुकी थी, वह दक्षिण अफ्रीका में अपने लंबे संघर्ष भरे प्रवास के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण गोखले के आमंत्रण पर अत्याचारी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने के लिए भारत आता है। गोखले उन्हें तत्कालीन भारत की राजनीतिक एवं सामाजिक दशा और दिशा से परिचित कराते हैं।

 

गांधी जी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिके गुरु मानते थे

गांधी जी के संघर्ष करने का अजीब तरीका

Gandhi Ji’s strange way of struggling

 

मोहनदास करमचंद गांधी भारत के ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति प्राप्त करने के संघर्ष में चुपचाप शामिल हो जाते हैं। और देखते ही देखते पता नहीं कब वह साधारण सा लगने वाला मोहनदास करमचंद गांधी नाम का व्यक्ति शक्तिशाली ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हो रहे भारतीयों के संघर्ष का अघोषित नायक बन जाता है और उसकी एक आवाज पर भारत के लोग कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे। 

परन्तु आश्चर्यजनक करने वाली बात यह है कि मोहनदास करमचंद गांधी  नाम का वह व्यक्ति जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारत के संघर्ष का नायक बन चुका था, उसका ना तो कोई विशालकाय व्यक्तित्व था और ना ही वह कोई युद्ध रणनीतिकार था और न ही वह किसी प्रभावशाली राज परिवार का सदस्य था । 

और उससे भी बड़ी आश्चर्यचकित कर देने वाली बात यह थी है कि दुनिया की सबसे ताकतवर और क्रूर शासन से लड़ने के लिए उसने जिस हथियार को चुना वह तो और हतप्रभ कर देने वाला था। उन्होंने दुनिया के सबसे ताकतवर और क्रूर शासन से लड़ने के लिए अहिंसा, असहयोग और सत्याग्रह के मार्ग को चुना।

और शुरू में तो लोगों को उनकी इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ कि जिस तरह यह व्यक्ति अंग्रेजों से लड़ना चाहता है उस तरीके से यह कभी अपने उद्देश्य में तनिक भर भी सफल हो पाएगा। कई लोगों ने तो गांधी जी के अंग्रेजों से लड़ने के तरीके को मूर्खतापूर्ण तरीके से आत्महत्या करना घोषित कर दिया था।

मगर जल्दी ही लोगों को मोहनदास करमचंद गांधी का करिश्मा समझ में आ गया, वे समझ गए कि यह व्यक्ति कुछ विलक्षण ही है और जो काम यह कर रहा है वह असाधारण है।

भारत में गांधी जी पहला सत्याग्रह 

चम्पारण सत्याग्रह (1917)  

अभी गांधी जी भारत की वस्तुस्थिति को समझ ही रहे थे और इसी क्रम में उन्होंने दिसम्बर 1916 में हुए कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लिया।  

राजकुमार शुक्ल

इसी अधिवेशन में चम्पारण (बिहार) से आया हुआ राजकुमार शुक्ला नाम का एक किसान गांधी जी से मिलता है। वह उन्हे अपने इलाके में किसानों के ऊपर अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और शोषण के बारे में बताता है और गांधी जी से उनकी मदद करने का अनुरोध करता है।

गांधी जी, जिनका भारत का अनुभव अभी अधिक नही है, वे पहली मुलाकात में राजकुमार शुक्ला से कोई विशेष प्रभावित नहीं होते हैं उन्हें बस किसी तरह टाल देते हैं गांधी जी उन्हें शायद इसलिए भी टाल देते हैं कि उन्होंने ना तो कभी चंपारण का नाम ही सुना था और ना ही उन्हें किसानों की समस्याओं का कोई अनुभव था।

लेकिन उस राजकुमार शुक्ला नाम के किसान ने गांधी जी में ना जाने क्या देखा कि वह उनसे बेहद प्रभावित था और वह उनसे महीनों तक बार-बार अनुरोध करता रहा । इसके लिए वह गांधी जी के घर गुजरात तक पहुंच गया। अंततः गांधी जी उसके बार-बार अनुरोध करने पर चंपारण जाने को बाध्य हो गए। राजकुमार शुक्ला के आमंत्रण पर गांधी जी का चंपारण आना भारत की आजादी के संघर्ष के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होने वाली घटना थी। राजकुमार शुक्ला ने गांधी जी की चंपारण पहुंचने से पहले ही उनके आने का प्रचार कर करके जनमानस में गांधी जी के प्रति एक सकारात्मक माहौल तैयार कर दिया था।

ये राजकुमार शुक्ल ही थे जिन्होंने गांधीजी को चंपारण आने को बाध्य किया और आने के बाद गांधीजी के बारे में मौखिक प्रचार करके सबको बताया ताकि जनमानस गांधी पर भरोसा कर सके और गांधी के नेतृत्व में आंदोलन चल सके।

1917 में गांधी जी चंपारण की तरफ चल पड़ते हैं जहां पर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने किसानों को अपनी भूमि के बड़े हिस्से पर केवल नील की खेती करने का तानाशाही आदेश दिया हुआ था क्योंकि अंग्रेजों को इंग्लैंड में चल रहे कपड़ा उद्योग के लिए नील की जरूरत होती थी। अंग्रेज सरकार के वफादार जमींदार भी किसानों से अनाप-शनाप टैक्स वसूलते थे।

दूसरी तरफ उस नील की खेती में किसानों को उनकी मेहनत के बदले में कुछ भी नहीं मिलता था और उसके ऊपर से उन पर कई तरह के अजीबो गरीब टैक्स डाले गए थे। एक तरह से अंग्रेज सरकार ने पूरी कृषि व्यवस्था को बंधुआ मजदूरी में बदल दिया था। किसानों के विरोध करने पर उन्हें ब्रिटिश पुलिस के कोड़े खाने पड़ते थे। 

गांधी जी के चंपारण आने की खबर ब्रिटिश प्रशासन को मिल चुकी थी और वहां के कमिश्नर ने उनके चंपारण आने पर रोक लगा दी थी।

Champaran Satyagrah by Gandhi Ji
Champaran Satyagrah by Gandhi Ji (Pic Credit: https://en.wikipedia.org/wiki/Champaran_Satyagraha#/)

कमिश्नर के इस आदेश की अवहेलना करते हुए 15 अप्रैल 1917 को गांधी जी ने चंपारण की धरती पर अपना पहला कदम रख दिया। गांधी जी के स्वागत में वहां पर जनसमुद्र उमड़ आया था। गांधी जी उनके लिए एक आशा की किरण बनकर आ रहे थे। गांधी जी वहां पर उनके स्वागत में उमड़ आए जनसमुद्र को देखकर बहुत प्रभावित हुए।

उन्होंने हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसानों की परेशानियों को सुना जो कि ब्रिटिश सरकार के आदेश से नील की खेती करने को बाध्य थे और उनके लिए अपनी मर्जी से नगदी फसलों की खेती करना प्रतिबंधित था। उनका बुरी तरह शोषण हो रहा था। गांधी जी ने कई गांवों का दौरा किया और जहां भी वे जाते थे उनके पीछे लोगों का हुजुम चल पड़ता था।

यह खबर पुलिस कमिश्नर तक पहुंच चुकी थी, पुलिस हरकत में आ गई। पुलिस सुपरिटेंडेंट ने गांधी जी के लिए जिला छोड़ने का आदेश जारी कर दिया परंतु गांधी जी ने विनम्रता पूर्वक उस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया।

प्रशासन के आदेश की अवमानना करने के लिए गांधी जी पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया और उन्हें अगले दिन कोर्ट में हाजिर होने का फरमान सुना दिया गया।

अगले दिन गांधी जी के कोर्ट पहुंचने से पहले ही हजारों किसानों की भीड़ कोर्ट के बाहर जमा हो गई थी और गांधी जी के समर्थन में नारे लगा रही थी। प्रशासन को बिल्कुल भी यह उम्मीद नहीं थी कि एक आदमी के समर्थन में इतने लोग वहां इकट्ठा हो जाएंगे।  इतनी बड़ी भीड़ से निपटने की प्रशासन कोई तैयारी नहीं थी। प्रशासन के हाथ पांव फूल गए, हालात की गंभीरता को भांपते हुए मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत के ही गांधी जी को छोड़ने का आदेश जारी कर दिया।

लेकिन गांधी जी ने सभी को हैरान करते हुए कानून के अनुसार अपने लिए सजा की मांग कर डाली। 

जज के सामने तो विचित्र सी स्थिति पैदा हो गई। 

खुद कल्पना करके देखिए वह किस प्रकार का दृश्य रहा होगा कि एक व्यक्ति जिसे जज खुद छोड़ना चाह रहा है लेकिन वह अपने लिए सजा की मांग कर रहा है और उसके समर्थन में हजारों लोग अदालत परिसर को घेरे हुए हैं और उसके समर्थन में नारे लगा रहे हैं। 

गांधी जी के इस अप्रत्याशित कदम से जज भी हैरान-परेशान था उसने गांधी जी के खिलाफ मुकदमा स्थगित कर दिया, बाहर खड़ी भीड़ में खुशी की लहर दौड़ गई, चारों तरफ गांधी जी की जय जयकार होने लगी।

चंपारण की इस घटना से अंग्रेज सरकार परेशान हो गई क्योंकि सारे देश का ध्यान चंपारण पर केंद्रित हो गया था जहां पर एक दुबले पतले से आदमी ने बिना किसी हिंसा और प्रतिरोध के शक्तिशाली अंग्रेज प्रशासन को झुका दिया था।

इस घटना से अंग्रेजी प्रशासन की बहुत भर्त्सना हुई अंग्रेज सरकार को मजबूर होकर एक जांच आयोग बैठाना पड़ा और गांधी जी भी इस आयोग के सदस्य बने। 

इसी आयोग की अनुशंसाओं पर कानून बनाकर सभी गलत नियमों को खत्म कर दिया गया। केवल अंग्रेजों और जमींदारों के लाभ के लिए पिछले 135 सालों  जबरदस्ती कराई जा रही नील की खेती बन्द हो गई,  और किसानों को उनकी जमीन पर कब्जा दे दिया गया और अब वे अपनी इच्छा से नकदी फसलों का उत्पादन कर सकते थे। 

यह भारत में गांधी जी के सत्याग्रह का पहला शंखनाद था। चंपारण भारत में गांधी जी की सत्याग्रह की पहली प्रयोगशाला बन गया

चंपारण सत्याग्रह का पहला उद्देश्य लोगों को सत्याग्रह के मूल सिद्धांत और उसकी शक्ति से लोगों को परिचित कराना था। गांधी जी अपने उद्देश्य में सफल रहे और उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि स्वतंत्रता प्राप्त करने की पहली शर्त है: “डर से स्वतंत्र होना”

सबसे पहले गांधी जी को बापू किसने कहा था

गांधी जी का यह कारनामा पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया, पूरे देश में यह संदेश गया कि यह मोहनदास करमचंद गांधी नाम का व्यक्ति एक असाधारण व्यक्ति है और गांधी जी के अहिंसात्मक सत्याग्रह को जनमानस की मान्यता एवं स्वीकार्यता मिल गई।

गांधी जी ने चंपारण के किसानों की ज्वलंत समस्या को दूर करने के लिए उसी तरह प्रयास किया जैसे कोई अभिभावक अपने बच्चों के लिए जी जान से प्रयास करता है। जिस निर्भीकता से उन्होंने सत्याग्रह को अंजाम दिया उससे सभी लोग बहुत प्रभावित हुए। 

राजकुमार शुक्ला, जो गांधी जी से पहले से ही बहुत प्रभावित था, और जिसके अथक अनुरोध पर गांधी जी चंपारण आए थे, उन्होंने अपने भावपूर्ण सम्बोधन में पहली बार गांधी जी को ‘बापू’ कहकर पुकारा।  48 वर्ष की अवस्था में गांधी जी को ‘बापू’ उपनाम मिल गया था। 

देशभर में ब्रिटिश शासन के आतंक से डरे हुए लोगों में नए आत्मविश्वास का संचार हुआ। आजादी की लड़ाई को एक नया हीरो मिल चुका था जिसे लोग ‘बापू’ कह रहे थे और उसके लिए पूरा देश दीवाना हो उठा।

चम्पारण सत्याग्रह के बाद से तो देश की आजादी के संघर्ष की दिशा ही बदल गई। चम्पारण सत्याग्रह से ही देश को  राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, ब्रजकिशोर प्रसाद, मजहरूल हक जैसी राजनीतिक प्रतिभाएं मिलीं।

गांधी जी को सबसे पहले महात्मा किसने कहा

Gandhi-Tagore - A black and white photo of a group of people - PICRYL - Public Domain Media Search Engine Public Domain Search

इतिहास की पुस्तकों में दर्ज जानकारी के अनुसार नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने रविंद्रनाथ टैगोर ने 12 अप्रैल 1919 को लिखे पत्र में गांधीजी को ‘महात्मा’ के रूप में संबोधित किया था। जिसके बाद गांधीजी ने उन्हें सम्मान व स्नेहवश ‘गुरुदेव’ कहा था। और उसके बाद से रविंद्र नाथ टैगोर के नाम से पहले गुरुदेव शब्द प्रचलित हो गया।

हालांकि कुछ विद्वान इस मत के भी हैं कि 1915 में राजवैद्य जीवराम शास्त्री ने सबसे पहले गांधीजी को ‘महात्मा’ कहा था।एक मत यह भी है कि स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 में ही उन्हें महात्मा की उपाधि दी थी. 

गांधी जी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता किसने कहा था

यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि वे स्वतंत्रता संग्राम शिरोमणि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे, जिन्होंने अप्रैल 1944 में रेडियो सिंगापुर के अपने संबोधन के दौरान गांधी जी को संबोधित करने के लिए पहली बार ‘राष्ट्रपिता’ शब्द का प्रयोग किया था। अपने संबोधन में सुभाष चन्द्र बोस ने भारतीय लोगों पर गांधी जी के प्रभाव की सराहना की तथा उन्होंने आई.एन.ए. (INA) और अंग्रेजों के खिलाफ अपने संघर्ष के लिए गांधीजी का आशीर्वाद भी मांगा।

जिसके बाद इसे भारत सरकार द्वारा भी मान्यता दी गई थी। 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या होने के बाद प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने रेडियो संबोधन में कहा, “राष्ट्रपिता अब नहीं रहे।”

आमतौर पर देश के राष्ट्रपिता का दर्जा किसी स्वतंत्र देश के पहले राष्ट्रपति या किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जो किसी देश की स्थापना के पीछे प्रेरक व निर्णायक शक्ति रहा हो। भारत में यह दुर्लभ सम्मान महात्मा गांधी जी को प्राप्त है जबकि वे स्वतन्त भारत की सरकार के किसी भी पद पर कभी नही रहे।

लेकिन देश के प्रति उनके अप्रतिम योगदान का सम्मान करने के लिए महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि दी गई थी। 

यहां पर यह उल्लेख करना उचित है महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में कि स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने के तरीके पर मतभेद होने के बावजूद, बोस ने गांधी जी के राजनीतिक दर्शन, कार्यक्रम, नेतृत्व और उनकी लोकप्रियता को स्वीकार कर लिया था। और नेताजी ने गांधी जी के प्रति सदैव सम्मान का प्रदर्शन किया।

Reference :

Gurudev and his Mahatma, 
 https://www.mkgandhi.org/short/ev49.htm
Champaran Satyagraha,
 https://en.wikipedia.org/wiki/Champaran_Satyagraha

2 thoughts on “How Gandhi became ‘Father of the Nation’ (गांधी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है)”

  1. रत्नाकर दुबे

    गांधी से महात्मा की यात्रा का अद्भुत जीवन से परिचित कराने के लिए आकाश भर गांधीवाद

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