I’m Unwelcomed, but They Can’t Ignore Me (मजबूरियों का राजघाट हूं)

 

I’m Unwelcomed, but They Can’t Ignore Me

(मजबूरियों का राजघाट हूं)

 

I'm Unwelcomed, but They Can't Ignore Me
I’m Unwelcomed, but They Can’t Ignore Me

जिसकी कोई सुनता नहीं

मैं एक शांति दूत हूं

जिसको कोई बुनता नही

मैं चरखे का काता सूत हूं

 

पत्थर की एक लकीर हूं

मैं अधनंगा फ़कीर हूं 

लुटी पिटी आवाम की 

मैं अखिरी जागीर हूं

 

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रुक चुका अभियान हूं

मैं मर चुका अभिमान हूं

खो चुका सबके लिए

मैं मिट चुका निशान हूं

 

अपनों से हारा हुआ हूं

अपनों का मारा हुआ हूं

उंगलियां सब मुझ पर उठी हैं

मैं आखिरी चारा हुआ हूं 

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बिना हथियार का मैं युद्ध हूं

स्वयं के ही विरुद्ध हूं

दोष सब मुझ पर लगे हैं

स्वयं से ही मैं क्रुद्ध हूं

 

समान्य जन क्यों व्यग्र है

भावना क्यों उग्र है

चिन्ताओं का समुद्र है

अनिश्चितताओं में विलीन क्यों

भविष्य ही समग्र है

Satyagraha Movement: Essay & Important Notes – StudiousGuy

जिनके राज-पाट हैं

अपूर्व ठाट-बाट हैं

आम सब बेदाम हैं

और भिड़े हुए कपाट हैं

 

हालात से लड़ा था मैं 

तूफान में अड़ा था मैं 

था द्वन्द आर पार का

जमीन पर खड़ा था मैं 

 

Mahatma Gandhi A Memorial Service - Cover - PICRYL - Public Domain Media Search Engine Public Domain Search

उड़ चुका गुबार हूं

अनसुनी गुहार हूं

पंख हैं कटे हुए

मैं मर चुका खुमार हूं

 

हो चुकी एक चूक हूं

सीने में उठती हूक हूं

मल रहा हूं हाथ मैं

बधिर हूं मैं मूक हूं

Gandhiji, Sabarmati (1931) | Source: Collected Works of Maha… | Flickr

जो जा चुका वो दौर हूं

अंतिम दिवस का ठौर हूं

जो कभी खिला नही

टूटा हुआ वो बौर हूं

 

टूटा हुआ संकल्प हूं

बस आखिरी विकल्प हूं

जरूरतें अथाह हैं

मैं न्यून हूं मैं अल्प हूं

 

मुट्ठी से फिसलती रेत हूं

बारिश में जल गया वो खेत हूं

एक आत्मा अतृप्त सी

भटक रहा एक प्रेत हूं

Photo 2234 | Photograph taken on January 31, 1948 when the d… | Flickr

मैं शून्य में चुपचाप हूं

एकांत वार्तालाप हूं

राख में विलीन हूं

मैं एक पश्चाताप हूं

The man who thought Gandhi a sissy

विवश हूं मैं मौन हूं

पूरा नही मैं पौन हूं

अनभिज्ञ मुझसे क्यों हुए

पूछो जरा मैं कौन हूं

Photos: On Mahatma Gandhi's 148th birth anniversary, a look at his journey | Hindustan Times

 खूंटी पर टंगा हुआ

बेकाम का समान हूं

बेदखल इस रण से मैं

टूटी हुई कमान हूं

 

बिन राग की मल्हार हूं

बिन चाक का कुम्हार हूं

थम चुका मैं जम चुका

मै शून्य में शुमार हूं

indianhistorypics on X: "1948 :: Mahatma Gandhi Shot Dead https://t.co/igfnlluDEi" / X

 

बीता हुआ अतीत हूं

पूरा ही मैं व्यतीत हूं

अब कहां अस्तित्व में

मैं पूर्ण कालातीत हूं

 

मजबूरियों का सिद्धांत हूं

एकांत मैं नितांत हूं

वे हैं विवश मेरे साथ को 

भले ही मैं देहान्त हूं

Gandhi Assassinated

 

चिंता भरा ललाट हूं

शांति की अंतिम बाट हूं

हूं विवश और मौन भी 

मैं मजबूरियों का राजघाट हूं

2096533bfe – WordPress photo | WordPress.org Photo Directory

 

File:Gandhi Ji.jpg - Wikimedia Commons

 

शब्द सेवा: विजय बिष्ट ‘पहाड़ी’

cropped fevicon 3.jpg www.bishtedition.com

 

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25 thoughts on “I’m Unwelcomed, but They Can’t Ignore Me (मजबूरियों का राजघाट हूं)”

  1. प्रो. डॉ. जयेश पाडवी, जलगाँव, महाराष्ट्र

    अप्रतिम रचना

  2. डॉ जगदीश यादव

    बेहतरीन लिखा है बिष्ट सर आपने l गांधी जी के व्यक्तित्व के हर आयाम को बारीकी से छुआ हैं।
    शुभकामनाये आपको
    सादर

  3. Arun Kumar Gupta

    आपकी इस रचना को पढ़कर लगता है कि आपने ध्यान-साधना के माध्यम से महात्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्सर्जित होने वाली शब्द-तरंगों को आत्मसात करके ही यह उत्कृष्ट रचना लिखी है। इस रचना की महानता यही है कि लगता है कि विजय बिष्ट के स्थान स्वयं महात्मा गांधी अपनी व्यथा सुना रहे हों। इस अमर और कालजयी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई और साधुवाद ।।।

    1. आपने रचना के मर्म को आत्मसात किया,
      आपके सार्थक आकलन हेतु हार्दिक आभार 🙏

  4. Arun Kumar Gupta

    आपकी इस रचना को पढ़कर लगता है कि आपने ध्यान-साधना के माध्यम से महात्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्सर्जित होने वाली शब्द-तरंगों को आत्मसात करके ही यह उत्कृष्ट रचना रची है। इस रचना की महानता यही है कि लगता है विजय बिष्ट के स्थान पर स्वयं महात्मा गांधी अपनी व्यथा सुना रहे हों। इस अमर और कालजयी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई और साधुवाद ।।।

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