Every coach or Physical Education personnel must know about Types of Learning Curve and its features

सीखने का वक्र (Learning Curve लर्निंग कर्व)
किसी नए ज्ञान अथवा स्किल (skill) को सीखने में कुछ समय लगता है और सीखने की प्रक्रिया में हुई प्रगति (progress) सदैव एक जैसी नहीं रहती। अलग-अलग व्यक्तियों के लिए यह प्रगति अलग अलग हो सकती है।
सीखने की प्रक्रिया में प्रगति अलग-अलग प्रकार की हो सकती है। कभी कभी सीखने में हुई प्रगति तेज हो सकती है, कभी धीमी होती है और कभी-कभी सीखने में प्रगति लंबे समय तक स्थिर रहती है अर्थात कभी-कभी प्रशिक्षण के दौरान ऐसा समय भी आता है, जिस समय लगातार अभ्यास करने के बावजूद सीखने की प्रक्रिया में कोई वृद्धि अथवा कमी नहीं होती है।
परिभाषा
सीखने की प्रक्रिया के दौरान समय के सापेक्ष प्रदर्शन (Performance) में हुई वृद्धि अथवा कमी को जब ग्राफ पर दर्शाया जाता है तो एक विशेष प्रकार का वक्र (Curve) प्राप्त होता है, जो कि प्रशिक्षण के दौरान खिलाड़ी के प्रदर्शन में आए परिवर्तनों को दिखता है, उसे लर्निंग कर्व (Learning Curve) अथवा सीखने का वक्र कहते हैं।
लर्निंग कर्व के क्षैतिज अक्ष (X Axis) पर प्रायः सीखने की प्रक्रिया में लगा समय (Duration) अंकित होता है तथा ऊर्ध्वाधर अक्ष (Y Axis) पर सीखने में हुई प्रगति (Progress) को अंकित किया जाता है।
सीखने में हुई प्रगति का आकलन 2 तरह से किया जा सकता है
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अभ्यास के दौरान प्रदर्शन को मापने में प्राप्त स्कोर जैसे जंप अथवा थ्रो की गई दूरी (distance), दौड़ने में लगा समय (timing) अथवा निशानेबाजी में अर्जित किए हुए अंक (points) आदि
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अधिकांश टीम गेमों में खिलाड़ी के प्रदर्शन का आकलन टाइमिंग, डिस्टेंस और प्वाइंट्स के बजाय खिलाड़ी के खेल की गुणवत्ता एवं उपयोगिता के आधार पर कोच (Coach) अथवा विशेषज्ञों (Experts) द्वारा किया जाता है
सामान्य लर्निंग कर्व के उदाहरण 👇
लर्निंग कर्व का आकार इस बात पर निर्भर करता है कि सीखने में हुई प्रगति को किन इकाइयों में दिखाया जाता है।
1- नीचे दिखाए गए ग्राफ में एक एथलीट की डिस्कस थ्रो (Discus Throw) ट्रेनिंग में हुई प्रगति को दर्शाया गया है जिसमें थ्रो की दूरी अभ्यास के समय के साथ निरंतर बढ़ती जा रही है जो कि थ्रो में हुई प्रगति को दर्शाता है।
अर्थात जितनी अधिक दूरी तक डिस्कस फेंका जाएगा उतना अच्छा प्रदर्शन माना जाएगा। ऐसे में ऊपर की तरफ बढ़ता हुआ ग्राफ प्रदर्शन में बढ़त (growth) को दर्शाता है तथा नीचे की ओर जाता हुआ ग्राफ प्रदर्शन में कमी (downfall) को दर्शाता है।
2- नीचे दिखाए गए ग्राफ में एक एथलीट की 100 मीटर दौड़ (100 Meter Sprint) की ट्रेनिंग में हुई प्रगति को दर्शाया गया है, जिसमें समय के साथ दौड़ने की टाइमिंग में निरंतर हो रही कमी एथलीट की प्रगति को दर्शाता है।
अर्थात दौड़ने में जितना कम समय लगेगा उतना ही अच्छा प्रदर्शन माना जाएगा। ऐसे में नीचे की ओर जाता हुआ ग्राफ प्रदर्शन में बढ़त (growth) को दर्शाता है तथा ऊपर की ओर जाता हुआ ग्राफ प्रदर्शन में कमी (downfall) को दर्शाता है।
लर्निंग कर्व में सामान्य तौर पर तीन स्थितियां होती हैं और सभी प्रकार की लर्निंग कर्व में इन तीन स्थितियों का मिश्रण होते हैं।
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प्रगति में तेजी (Improvement in Perfromence)
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प्रगति में गिरावट (Decline in Perfromence)
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प्रगति का स्थिर हो जाना (Perfromence/Progress Becomes Stagnant)
लर्निंग कर्व के प्रकार – Types of Learning Curve –
लर्निंग कर्व 3 प्रकार के होते हैं
1-धनात्मक संवेग वाले लर्निंग कर्व
2-ऋणात्मक संवेग वाले लर्निंग कर्व
3- पठार वाले लर्निंग कर्व
1- धनात्मक संवेग वाले लर्निंग कर्व
जब सीखने की प्रक्रिया के शुरुआती चरण में प्रगति धीमी गति से हो परंतु बाद में प्रगति तेजी से बढ़ती जाती है, ऐसे कर्व धनात्मक संवेग वाले लर्निंग कर्व कहलाते हैं। ऐसे में अवतल (concave) आकृति का लर्निंग कर्व प्राप्त होता है। सीखने की प्रगति में तेजी हमेशा के लिए नहीं रह सकती किसी न किसी बिंदु पर सीखने की प्रगति धीमी अथवा स्थिर हो जाती है।
2-ऋणात्मक संवेग वाले लर्निंग कर्व
जब सीखने के प्रारंभिक चरण में प्रगति में तेज वृद्धि होती है परंतु बाद में प्रगति की वह तेजी धीमी पड़ जाती है और एक विशेष बिंदु के बाद प्रगति रुक जाती है। ऐसे कर्व ऋणात्मक संवेग युक्त लर्निंग कर्व कहलाते हैं। ऐसे में उत्तल (convex) आकृति का कर्व प्राप्त होता है
3- पठार वाले लर्निंग कर्व
सीखने की प्रारंभिक अवस्था में कुछ समय तक तेज वृद्धि होने के पश्चात सीखने की प्रगति रुक जाती है तथा कुछ समय तक स्थिर रहती है। ऐसे में कर्व एक सीधी रेखा में चलता है। सीखने की प्रगति में शून्य वृद्धि (zero growth) के इस चरण को पठार अथवा प्लेट्यू (plateau) कहते हैं
सीखने के पठार – Plataeu
अक्सर खिलाड़ियों के प्रशिक्षण के दौरान एक काल खंड (phase) ऐसा आता है जब उनके प्रदर्शन (Performence) में ना हो तो सुधार आता है और ना ही उसमें कोई कमी आती है अर्थात उनकी परफॉर्मेंस की प्रगति स्थिर हो जाती है।
लर्निंग कर्व में इस स्थिति को सीखने के पठार (Plataeu) कहते हैं
प्रशिक्षण दौरान खिलाड़ी के प्रदर्शन में स्थिरता आ जाना अर्थात पठार (Plataeu) आ जाना एक सामान्य घटना होती है जो कि कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों या महीने तक रह सकती है
यदि पठार की स्थिति लंबी चलती है तो कई बार खिलाड़ी निराश एवं हतोत्साहित (Demotivated) हो जाते हैं और वे प्रशिक्षण में गंभीरता लेना कम कर देते हैं

ऐसी स्थिति में प्रशिक्षक तथा अध्यापकों का काम बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पठार के कारण खिलाड़ी अपने प्रत्यत्न में कमी ना लाएं क्योंकि पठार नितांत रूप से अस्थाई होता है,
यदि कोई खिलाड़ी पठार वाली स्थिति के दौरान भी अपने प्रेरणा स्तर (Motivation Level) को बनाए रखता है और अभ्यास में कमी नहीं आने देता है तो प्रायः देखा गया है पठार वाले कालखंड के पूरा होने के बाद परफॉर्मेंस में अचानक से तेज वृद्धि होने लगती है।
सीखने के पठार बनने बनने के क्या कारण हो सकते हैं ?
सबसे पहले प्रत्येक कोच और खिलाड़ी को आवश्यक रूप से यह समझना चाहिए कि खिलाड़ी के प्रदर्शन में हमेशा हमेशा के लिए वृद्धि जारी नहीं रह सकती है। एक बार उच्च प्रदर्शन (Peak Performance) हो जाने के बाद खिलाड़ी के प्रदर्शन में कमी आना अथवा स्थिरता आना स्वाभाविक होता है।
किसी न किसी बिंदु पर प्रगति के क्रम में विराम आता है फिर कुछ समय के बाद पुनः उनके प्रदर्शन में सुधार आता है अथवा गिरावट आती है। ऐसा प्रत्येक खिलाड़ी के साथ होता है।
यह प्रशिक्षकों के ऊपर निर्भर करता है कि वे अपनी प्रशिक्षण साइकिल (Training Cycle) को इस प्रकार से डिजाइन करें कि मुख्य प्रतियोगिता के समय खिलाड़ी अपने उच्च प्रदर्शन (Peak Performance) पर पहुंच जाए। क्योंकि एक बार उच्च प्रदर्शन हो जाने के बाद कुछ समय के लिए प्रदर्शन में गिरावट अथवा स्थिरता अवश्य आती है।
एक सुनियोजित प्रशिक्षण साइकिल (Training Cycle) से यह सुनिश्चित किया जाता है कि सीखने के पठार वाला समय (Phase of Plataeu) कम से कम समय तक रहे और उसके पूर्ण हो जाने पर प्रदर्शन में और सुधार ही आए, गिरावट ना आए
फिर भी निम्नलिखित कुछ कारण है जो पठार बनने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं 👇
1- खिलाड़ी का शरीर ओवरलोड हो जाता है जिससे अनावश्यक थकान होने लगती है
2- रिकवरी की प्रक्रिया धीरे हो जाती है
3- खिलाड़ी को चोट लगने अथवा बीमारी से ग्रस्त होने के कारण भी यह स्थिति आ सकती है
4- लगातार अभ्यास की थकान से रुचि में कमी आ जाती है
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